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________________ अकालवर्ष वृहत् जैन शब्दार्णव अकालवर्ष का संरक्षक बनाकर स्वयम् "उदासीन- ८६६, ईस्वी सन् ९७४ ) तक राज्य किया। श्रावक" हो आयु के अन्त तक वर्ष एकांत और अपने पवित्र राष्टकट या राठौरवंश वास किया । अकालवर्ष ने पन्द्रह सोलह की दक्षिण देशीय मान्यखेट की महान वर्ष पश्चात् सारा राज्य कार्य अपने पितृव्य | गद्दी का १८ वा अन्तिम राजा हुआ जिसे 'इन्द्रराज' से अपने हाथ में ले लिया। "चौलुक्य तैलप द्वितीय" ने विक्रम सम्वत् यह अपने पिता की समान बड़ा पराक्रमी १.३१ में जीतकर "कल्याणी" के पश्चिमी और बीर राजा था। गुर्जर, गौड़, द्वार- चौलुक्यों की शाखा स्थापित की। समुद्र, कलिङ्ग, गङ्ग, अङ्ग, मगध आदि | (४) अकालघर्षशुभतुझ-यह राष्ट्रकूटदेशों के राजा इसके वशवीय होगए थे । वंशीय गुर्जर शाखा का पाँचवा राजा (३) अकालवर्ष तृतीय-"यह अकालवर्ष हुआ जो “अकालवर्ष प्रथम' के लघु पुत्र द्वितीय' के लघु पौत्र “वद्दिग अमोघवर्ष" 'ध्रुवकलिवलभधारावर्ष-निरुपम' के छोटे का ज्येष्ठ पुत्र राठौर या राष्ट्रकूटवंश का पुत्र 'इन्द्रराज' का प्रपौत्र था। यह विक्रम १५ वाँ राजा था। इसने अपने प्रपितामह की दशवीं शताब्दी में गुजरात देश में ही के नाम पर "कृष्ण अकालवर्ष-शुभ- राज्य करता था। इस वंश की इस गुर्जर तुङ्ग” नाम से वीर नि० सं० १४८४ से शाखा का प्रारम्भ “इन्द्रराज" से हुआ १५०५ ( वि० सं० ६६६ से १०१७ ) तक जिसे इसके बड़े भाई "गोविन्द श्रीवल्लभ" २१ वर्ष राज्य किया। इसके तीन लघु ने, जो राष्ट्रकूटबंश का आठवाँ राजा था भ्राता "जगततुङ्ग," "खोट्टिग-नित्यवर्ष" और जिसका राज्य उस समय मालवा और "कक्कअमोघवर्ष नृपतुङ्ग” थे। इसके देश की सीमा तक पहुँच चुका था, पश्चात् इसका तीसरा भाई ‘खोट्टिगनित्य- लाटदेश ( भड़ोंच ) को भी विक्रम सम्वत् वर्ष' राज्याधिकारी हुआ जिसके पश्चात् ८६० के लगभग जीतकर यह देश दे इसके चौथे भाई “कक्कअमोघवर्ष नृपतुग" दिया था। ने राजगद्दी पाकर वीर निर्वाण सम्वत् ___ इस वंश की वंशावली अगले पृष्ठ १५१६ (वि० सं० १०३१, शक सम्वत् पर देखें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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