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________________ - । ( २७४ ) अणुवर्गणा वृहत् जैन शब्दार्णव अणव्रत पदार्थ के स्कन्ध बनते हैं उन्हीं परमाणुओं के | हर दम रखने और उनके अनुकूल चलने संयोग से उनके मूलगुणों के अंशों में यथा से इस अणुव्रत की असत्य भाषण से आवश्यक हीनाधिक्यता होकर किसी अन्य | रक्षा होकर उसका पालन निर्दोष रीति से पदार्थ के स्कन्ध भी बन सकते हैं और बनते | भले प्रकार हो सकता है। रहते हैं। और इसी लिये पृथ्वी, अग्नि, जल, नोट-सत्याणुव्रत की ५ भावनाओं घायु या सोना, चाँदी आदि के स्कन्ध भी के नाम यह हैं-(१) क्रोध त्याग (३) लोभ वाद्यनिमित्त मिलने पर परस्पर एक दूसरे | त्याग (३) भयत्याग (४) हास्यत्याग (५) 1 के रूप में परिवर्तित हो सकते हैं। अनुवीचि भाषण ॥ (पंचास्तिकाय ८०, ८१, २,] (त० सू० ५, अ०७) गो० जी० ६०८...... ) प्रणवत (अनुव्रत)-एकोदेश विरक्तता, नोट ३-"अणु" शब्द का प्रयोग 'अनु' हिंसा आदि पंच पापों का एक देश त्याग, के स्थान में भी कभी २ किसी अन्य संज्ञा. पूर्ण विरक्तता या महाव्रत की सहायक या वाची या क्रियाबाची शब्द के पूर्व उसके सहकारी प्रतिज्ञा, महावत की योग्यता उपसर्ग रूप भी किया जाता है तब यह अनु प्राप्त करने वाली प्रतिज्ञा ॥. की समान “पीछे, सादृश्य, समान, अनुकूल, सहायक", इत्यादि अर्थ में भी आता है। हिंसा, अनृत ( असत्य ), स्तेय (अदत्त जैसे "अणुव्रत" शब्द में “अणु" "अनु" के ग्रहण या अपहरण या चोरी), अब्रह्म (कु. अर्थ में है ॥ शीलया मैथुन), और परिग्रह (अनात्मया मणवर्गणा-अणुसमुदाय, त्रैलोक्यव्यापी अचेतन पदार्थों में ममत्व ), यह ५ पाप हैं। इनसे विरक होने को, इन्हें त्याग करने पुद्गलद्रव्य के अविभागी अणुओं अर्थात् को, या इनसे निवृति स्वीकृत करने की | परमाणुओं के समूह की जो २३ प्रकार की शल्य रहित प्रतिज्ञा को 'व्रत' कहते है। परमाणु से लेकर महास्कन्ध पर्यंत वर्ग यह प्रतिज्ञा जब तक पूर्ण त्याग रूप न "णायें हैं उनमें से प्रथम वर्गणा का नाम । हो किन्तु पूर्ण त्याग की सहायक और (पीछे देखो शब्द “अणु" और "अग्राह्य उसी की ओर को ले जाने वाली हो तथा वर्गणा')॥ किसी न किसी अन्श में उसी की अनु. ( गो० जी० ५९३-६०३) करण रूा हो तो उसे "अणव्रत" या नोट- "अणवर्गणा" शब्द में "अणु" 'अनुव्रत' कहते हैं । और जब यही प्रतिज्ञा शब्द का प्रयोग 'परमाणु' के अर्थ में किया पूर्ण रूपसे पालन की जाय तो उसे 'महागया है ॥ अत' कहते हैं। अणुवीचीभाषण (अनुवीचीभाषण)- उपर्युक्त पंच पाप त्याग की अपेक्षा आगमानुसार परिमित वचन बोलना। से अणुव्रत निनोक्त ५ हैं:. यह सत्त्याणुव्रत की ५ भावनाओं में | (१) अहिंसाणुव्रत, या प्रसहिंसात्याग से एक भावना का नाम है जिनकी स्मृति व्रत । - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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