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________________ ( २७३ ) | अणु वृहत् जैनशब्दार्णव देखे थे जिस से उसने अणु या परमाणु स्थूल भेद २०० निम्न प्रकार हो जाते हैं:की लघता या सूक्ष्मता का अनुमान किया | १. स्पर्श गुण अपेक्षा ४ भेद--(१) शीतथा कि वह इस कीट के सहस्रांश ले भी छोटा | स्निग्ध (२) शीतकक्ष (३) उष्णस्निध (४) । होगा । इत्यादि उष्णकक्ष। ___सारांश यह कि उपयुक्त विद्वानों ने । २. स्पर्शगुण अपेक्षा इन उपयुक्त ४ जिस जिस को परमाणु स्वीकृत किया या प्रकार के परमाणुओं में से प्रत्येक में रस के समझा है उन में से प्रत्येक अणु जैन सिद्धा- ५ भेदों में से कोई एक रहनेसे रसगुण अपेक्षा न्तानुकूल एक स्कन्ध ही है, परमाणु नहीं उसके ५ गुणित ४ अर्थात् २० भेद हो जाहै। परमाणु तो पुद्गल द्रव्य ( Matter ) येंगे। का इतना छोटा और अन्तिम अंश है जिसे ३. इसी प्रकार इन २० प्रकार के परमा| संसार भर की कोई प्राकृतिक शक्ति भी दो णुओं में से प्रत्येक में गन्ध के २ भेदों में से भागों में नहीं बाँट सकती । आजकल के कोई एक रहने से गन्ध गुण अपेक्षा उसके दो वैज्ञानिकों की दृष्टि में हाइड्रोजन गैस का जो गुणित २० अर्थात् ४० भेव हो जायेंगे । और उपयुक्त छोटे से छोटा अंश आया है अत्यन्त ५ वर्णगुण अपेक्षा ५ गुणित ४० अर्थात् २०० सक्ष्म होने पर भी जैनसिद्धान्त की दृष्टि से भेद हो जाते हैं। .. असंख्य परमाणुओं का समूहरूप एक स्कन्ध पुद्गल द्रव्य के उपर्युक्त २० असाधारण या पिंड है॥ |गुणों में से प्रत्येक गुण के अविभागी प्रतिनोट २-परमाणु पुद्गल द्रव्य का एक च्छेद या अविभागी अंश अनन्तानन्त होते अत्यन्त लघकण है। इसी लिये हम अल्पज्ञों हैं। अतः इन गुणों के अविभागी अंशों की को इन्द्रियगोचर न होने पर भी उस में असा- होनाधिक्यता की अपेक्षा से परमाण भी धारण पौदगलिक गुण(Material-proper | अनन्तानन्त प्रकार के हैं जिनके प्राकृतिक ties)स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण सदैव विद्यमान | नियमानुसार यथा योग्य संयोग वियोग से रहते हैं। पुद्गल ट्रध्यके इन चार मूल गुणों के विश्वभर के सर्व प्रकार के पौड्गलिक पदार्थों विशेष भेद २० हैं जिन में से परमाणु में स्पर्श ( Material Substances ) की रचना के ८ भेदों में से दो ( शीत-उष्ण युगल में से | सदैव होती रहती है। कोई एक और स्निग्ध-रूक्ष युगल में से कोई यहां इतना ध्यान रहे कि पृथ्वी, जल, एक और हलका-भारी, नर्म कठोर, इन ४ में अग्नि, वायु, या सोना, चांदी, लोहा, तांबा, से कोई नहीं), रस के ५ भेदों अर्थात् तिक्त, गन्धक, हाइड्रोजन, ऑक्सिजन, नाइट्रोजन कटु, कषायल, आम्ल और मधुर में से कोई आदि पदार्थों की अपेक्षा,जिन्हें कुछ प्राचीन या एक, गन्ध के दो भेदों अर्थात् सुगन्धि दुर्गन्थि अर्वाचीन दार्शिनिक या वैज्ञानिक लोग 'द्रव्य' में से कोई एक, और वर्ण के ५ भेदो अर्थात् ( अमिश्रित पदार्थ Elements) मानते हैं, कृष्ण, नील, पीत, पद्म, और शुक्ल में से कोई परमाणुओं में किसी प्रकार का कोई मूल एक, इस प्रकार यह ५ गुण सदैव विद्यमान | भेद नहीं है किन्तु जिन जाति के परमाणुमो रहते हैं। इन २० गुणों की अपेक्षा परमाणु के | के संयोग से पृथ्वी आदि में से किसी एक EHRA Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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