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________________ ( २७२ ) . अणु वृहत् जैनशब्दार्णव अण सहकारों, अनुसार। | जा सकता किन्तु जलाने से पीतवर्ण की 'अण' शब्द का प्रयोग मुख्यतः पुदगल | लपट प्रदर्शित करता और औक्सिजन गैस । द्रव्य (मैटर matter ) के अंशही केलिये (Oxygen gas)से नियमानुसार विधिपूर्वक । किया जाता है, और काल द्रव्य की अंश | मिलने पर जल कण बनाता है उस के साठ कल्पना में भी, परन्तु अन्य चार द्रव्यों अ- | लाख संख ( ६०००००००००००००००००००० र्थात् जीव, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, ००० चौबीसस्थानप्रमाण ) अणु तोल में और आकाश की अंशकल्पना में नहीं । केवल “एक रत्ती भर" होते हैं । इसी एक की में प्रदेशाट अण को अर्थात् एक रत्तीभर हाइड्रोजन गैस का प्रयोग होता है और गुणों की अंश- के ६० लाख संखवे भाग को वे परमाण मानते कल्पना में "अविभागी प्रतिछेद" का। । है जो वास्तव में नैयायिक आदि के माने प्रदेश यथार्थ में आकाश द्रव्य के या क्षेत्र हुए परमाणु से अत्यन्त सूक्ष्म और लघ है।। के उस छोटेसे छोटे अंश को कहते हैं जिसमें । आजतक आविष्कृत अणुवीक्षण अर्थात् | पुदगलद्रव्य का केवल एक छोटे से छोटा चूक्ष्म दर्शक यंत्रों में सर्वोत्कृष्ट यंत्र से देखने | अंश अर्थात परमाण समावे । प्रदेश पर कोई वस्तु अपने सहज आकार से आठ | यद्यपि क्षेत्रमान का एक अंश है तथापि सहस्र (८०००) गुणी बड़ी दीख पड़ती है।। छहों ही द्रव्यों के लघुत्व और गुरुत्व का वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि कोई ऐसा अन्दाज़ा इसी मान के द्वारा भले प्रकार अणुवीक्षण यंत्र आविष्कृत हो जाय जिस के । लग सकनेसे भाचायौं ने अलौकिक गणना द्वारा कोई पदार्थ अपने सहज आकार से | में इसी को एक पैमाना मान लिया है जिस चौसठ सहस्र (६४०००) गुणा बड़ा दीख सके | से नाप कर प्रत्येक द्रव्य का मान बताया तो जलके परमाणु अलग अलग उस यंत्र द्वारा जाता है। ( पीछे देखो शब्द "अविद्या" | देखे जा सकते है अर्थात् वे मानते हैं कि जो का नोट ७)॥ छोटे से छोटा जलकण हमें नेत्र द्वारा दीख नोट १-परमाणु (जर्ग या ऐटम Atom) सकता है-अथवा दूसरे शब्दों में यो कहिये | कोई तो बाल रेत के कण को और कोई कि जो जलकण किसी सुई की बारीक से इसके ६० वें भाग को मानते हैं । नैयायिक | बारीक नोक पर रुक सकता है-उस जलअन्धेरी कोठरी में किसी छिद्र द्वारा प्रवेशित कण का चौसठ सहस्रवां भागांश जल का सूर्यकिरणों में उड़ते चमकते प्रत्येक रजकणके एक परमाणु है । यह परमाणु उपयुक्त हाइ६० वें भाग को परमाणु समझते हैं। आज ड्रोजन गैस के एक परमाणु से बहुत बड़ा है। कल के वैज्ञानिकों ने हिसाब लगा कर अनु- सन १८८ ३ ई० में डाक्टर डालिंजर मान किया कि हाइड्रोजन गैस (Hydrogen ( Dr. Dallinger ) ने किसी सड़े मांस gas ) जो हलके से हलका अमिश्र द्रव्य वायु के केवल एक घन इन्च के एक सहस्रवें भा. 1 से भी बहुत ही सूक्ष्म है और जिस में न गांश में अणु वीक्षण यंत्र (खुर्दवीन Micras कोई वर्ण, न रस और न गन्ध है अर्थात् जो| cope ) द्वारा २ अर्ब ८० करोड़ ( २८० नेत्रादि किसी इन्द्रिय द्वारा पहिचाना नहीं कोटि, २८०००००००० ) जीवित कीट (कीड़े) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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