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अठाईव्रत घृहत् जैन शब्दार्णव
अठाइवत स्थापे, अथवा आवश्यक्तानुसार जिनालयों (६) प्रयोदशी का-४० लक्षापघास का फल और जैन प्रन्थों का जीर्णोद्धार करावे ।। (७) चतुर्दशो का-१ कोटि उपचासका फल जहां २ आवश्यक्ता हो वहां वहां ८,७,५/(८) पूर्णिमा का-३कोटि ५० लक्ष उपवास या ३ नवीन पाठशालाएं खुलवावे अथवा | का फल यथाशक्ति और यथा आवश्यक पुरानी ११. इस व्रत को उत्कृष्ट परिणामों के पाठशालाओं को सहायता पहुँचावे और साथ यथाविधि पालन करने का अन्तिम विद्यार्थियों को पाठ्य पुस्तकें व मिठाई फल निम्न प्रकार है:-- आदि देकर संतुष्ट करे । यथा आवश्यक (१) तीन वर्ष तक करने वाले को जिन मन्दिरों के अतिरिक्त अन्यान्य सर- स्वर्ग प्राप्त होता है, तत्पश्चात् कुछ ही स्वती-भवन सर्व साधारण के लाभार्थ जन्म में मुक्तिपद प्राप्त होजाता है। खोले। सकलदत्ति, पात्रदत्ति, दयादत्ति, (२) पांच या सात वर्ष करने वाला और समानदत्ति, इन चार प्रकार के दान स्वर्ग और मनुष्य पर्याय के उत्तमोत्तम सुख में से जो जो बन पड़ें यथाशक्ति विधि भोग कर ७ वे जन्म तक मोक्षपद प्राप्त पूर्वक करे।
कर लेता है। ___ (२) मध्यम-निम्नलिखित जघन्य- | (३) आठ वर्ष तक करने वाला द्रव्य, विधि से अधिक जो कुछ बन पड़े करै। क्षेत्र, काल, भाव की योग्यता पूर्वक उसी - (३) जघन्य-किसी एक जैनमन्दिर
भव से अथवा तृतीय भघ तक सिद्ध पद में यथा आवश्यक वेष्ठन सहित कोई जैन .. पाता है। प्रन्थ, धोती, दुपट्टा, लोटा, थाल, आदि
१२. इस महान व्रत को धारण करने आठ उपकरण, प्रत्येक एक एक चढ़ावे में निम्न लिखित स्त्री पुरुष पुराण-प्रसिद्ध और अपनी लाई हूई सामग्री से अभिषेक और नित्यपूजन पूर्वक पंचमेरु और अठाई (१) अनन्तवीर्य-इसने इस व्रत को | पूजा स्वयं करे, ‘अथवा अपनी पालन कर चक्रवर्ती पद पाया। उपस्थिति में करावे । यथाआवश्यक (२) अपराजित-इसने भी चक्रवर्ती | पात्रदत्त या दया दत्ति भी करे। आगे पद प्राप्त किया। देखो शब्द 'अठाई व्रतोद्यापन', पृ०२४० ॥ . (३) विजयकुमार--यह चक्रवर्ती का
१०. इस व्रत को निर्मल भाव के साथ सेनापति हुआ। सर्वोत्कृष्ट रीति से पालन करने का प्रत्येक (४) जरासन्ध--इस ने पूर्व भव में यह दिन सम्बन्धी महात्म निम्नोक्त है :- व्रत किया जिस के प्रभाव से त्रिखंडी (१) अष्टमी का-१० लक्षोपवास का फल (अर्द्धचक्री) हुआ। (२) नवमी का-१० सहसोपवास का फल (५) जयकुमार-उसी जन्म में अवः | (३) दशमी का-६० लक्षोपवास का फल धिज्ञानी हो श्री ऋषभदेव का ७२वां गणः | (४) एकादशी का-५० लक्षोपवास का फल धर हुआ और उसी जन्म से मोक्षपद भी (५) द्वादशी का-८४ लक्षोपवास का फल | पाया॥
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