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________________ ( २३७ ) अठाईव्रत वृहत् जैन शब्दार्णध अठाईव्रत। वास की शक्ति न हो तो दशों दिन एका- खित मंत्रों को १०८ बार जपे अर्थात् एक शना ही करै । इस प्रकार प्रतिवर्ष ३ धार | माला फेरे:-- करता हुआ ८ वर्ष या ५ वर्ष या केवल । (१) अष्टमी को-ॐ ह्रीं नन्दीश्वर संज्ञायनमः। ३ही वर्ष करै॥ (२) नवमी को--ॐ ह्रीं अष्टमहाधिभूतिसंतीनों प्रकार के व्रतों में निम्नोक्त शाय नमः। नियमों का अवश्य पालन करैः- | (३) दशमी को-ॐ ह्रीं त्रिलोकसागरसंशाय १. सप्तमी की धारणा के समय से ममः।। पविवा के पारणा के समय तक मन्द- / (४) एकादशी को--ॐ ह्रीं चतुरमुखसंशाय कषाययुक्त रहे और सर्व गृहारम्भ त्याग कर धर्म ध्यान में समय को लगावे ॥ (५) द्वादशी को--ॐ ह्रीं पञ्च महारललक्षण . २. नित्य प्रति अभिषेक और नित्य- संज्ञाय नमः। नियम पूजा पूर्वक नन्दीश्वर द्वीप सम्बन्धी (६) प्रयोदशीको--ॐ ह्रीं स्वर्गसोपान संशाय अष्टान्हिका पूजन करे और नन्दीश्वरद्वीप नमः। सम्बन्धी सर्व रचना का पाठ त्रिलोकलार | (७) चतुर्दशी को-ॐ ह्री सिद्धचक्रसंज्ञाय | आदि किसी प्रन्थ से भले प्रकार समझता नमः। हुआ मन लगा कर नित्य प्रति करे या (८)पूर्णिमा को-ॐ हीं इन्द्रध्वज संज्ञाय नमः॥ सुने ॥ ८. प्रत्येक एकाशना या यथायोग्य ३. नित्य प्रति पञ्चमेरु पूजा भी करै भक्ति विनय सहित पारणे के दिन किसी सथा बन पड़े तो चौबीस तीर्थकरादि | सुपात्र को यो साधर्मी को या करुणा सअन्यान्य पूजन भी यथारुचि करै॥ हित किसी भूखे को भोजन कराकर स्वयम् ४. हो सके तो नन्दीश्वरद्वीप का, भोजन करे ॥ . . .. मंडल बना कर पूजन किया करै॥ ३. इस प्रकार ३, ५, ७, या ८ वर्ष ५. सप्तमी से पड़िवा तक दो दिन तक इस व्रत को करने के पश्चात् निम्न अखण्ड ब्रह्मचर्य से रहे । चटाई आदि पर प्रकार उस का उद्यापन' करे और उद्यापन भमि में सोवे । अल्प निद्रा ले ॥ करने की शक्ति न हो तो दूने वर्ष तक ६. एकाशना के दिन किसी प्रकार व्रत करे:का अभक्ष या गरिष्ट भोजन का भाहार। (१) उत्कृष्ट-जहाँ जहाँ कहीं आवन करै । सचित पदार्थों का भी त्याग श्यकता हो वहाँ यहाँ ८, ७, ५ मा ३ करै । हल्का और अल्प भोजन करे जिस मषीन जिनालय निर्माण करा कर उन की से निद्रा और आलस्यादि न सतावै । घेदी प्रतिष्ठा और जिनविम्व प्रतिष्ठा आदि हो सके तो छहों रस का या जितनों का पूर्वक उन में वे प्रतिष्ठित जिन प्रतिमाएँ पन पड़े त्याग करे । गृद्धता से या जिह्वा- पधरावे और आवश्यकीय सर्व उपकरणलम्पटता के लिये कोई भोजन न करे ॥ | आदि दे, तथा प्रत्येक जिन मन्दिर में यथा ७. अष्टमी से पूर्णिमा तक निम्न लि- भावश्यक सरस्वतीभंडार भी अवश्य - - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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