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________________ and ( २३९ ) अठाई व्रत उद्यापन वृहत् जैन शब्दार्णव अठाईव्रत कथ (६) जयकुमार की स्त्री सुलोचना--1 से हम दोनों भाई अरिंजय और अमित. उसी जन्म में आर्यिका हो तपोबल ले अजय उत्पन्न हुए हैं'। यह सुन कर राजा स्त्रीलिङ्ग छेद कर स्वर्ग में महर्द्धिक देव । हरिषेण ने श्री गुरु से विधि पूछ कर उनकी आज्ञानुसार नन्दीश्वरवत फिर ग्रहण (७) श्रीपाल--इस का और इस के किया और अन्त में मुनिदीक्षा धारण कर ७०० साथियों का तीब्र कुष्ट रोग उसी तपोबल से अष्टकर्म नाश कर उसी जन्म जन्म में दूर हुआ ॥ से मुक्तिपद पाया ॥ .. इत्यादि । .. नोट १-धर्तमान अवसर्पिणी के गत अठाईव्रत उद्यापन-आगे देखो शब्द चतुर्थ काल में २०वें तीर्थंकर श्री मुनिसुवत नाथ के तीर्थकाल में राम-लक्ष्मण-खे पूर्व 'अठाईव्रतोद्यापन', पृ० २४० ॥ हरिषेण नाम का १०धाँ चक्रवर्ती राजा मी अठाईव्रत कथा-अष्टान्हिकवत या न- | सूर्यवंश में हुआ है, पर उपयुक्त कथाविहित | न्दीश्वरव्रत की कथा । इस कथा का | हरिषेण और चक्रवर्ती हरिषेण एक महीं हैं, सारांश निम्न प्रकार है:-- . . क्योंकि दोनों के जन्मस्थान और माता पिता इसी भरतक्षेत्र के आर्यखंड की अयो- के नामों में बड़ा अन्तर है । इटावा निवासी ध्या नगरी के सूर्यवंशी राजा 'हरिषेण' पं० हेमराज कृत एक भाषा कथाग्रन्थ में ने एक बार अपनी गन्धर्वसेना' आदि उसे भी चक्रवर्ती लिखा है, परन्तु कई कथाकई सनियों सहित 'अरिंजय' और 'अ- प्रन्थों का परस्पर मिलान करने से ज्ञात मितञ्जय' नामक चारणऋद्धिधारी मुनियों होता है कि वह कोई अन्य समय अन्य क्षेत्र से धर्मोपदेश सुन कर अपने भवान्तर | का भी चक्रवर्ती न था ।। पूछे । उत्तर में श्री गुरु ने कहा कि 'इसी नोट २--अठाईव्रतकथा संस्कृत, हिंदी अयोध्यापुरी में पहिले एक कुवेरदत्त नामक भाषा, छन्दोबद्ध और बचनिकारूप कई संवैश्य रहता था जिस की सुन्दरी नामक स्कृतज्ञ कवियों की और कई भाषा कक्यिों स्त्री के गर्भ से श्रीवर्मा, जयकीर्ति और की भनाई हुई हैं जिन का विवरण निम्न प्र. जयचन्द्र नाम के तीन पुत्र पैदा हुए। | फार है:तीनों ने निग्रन्थ गुरु के उपदेश से श्रद्धा- १. संस्कृतकथा--(१) श्री श्रुतसागर पूर्वक यथाविधि नन्दीश्वरवत पालन | (२) सुरेन्द्रकीर्ति (३) हरिषेण इत्यादि रचित किया जिसके फल में श्रीवर्मा तो प्रथम | २..हिन्दीभाषा कथा चौपाईयन्धस्वर्ग के सुख भोग कर इसी नगर के राजा (१) इटावा निवासी पं० हेमराज (२) श्री चक्रवाहु की रानी विमलादेवी के उदर भूषणभट्टारक के शिष्य श्री ब्रह्मज्ञानसागर से तू उत्पन्न हुआ और शेष दोनों भाई (३) खरौआ जातीय श्री जगभूषण भट्टारक जयीर्त्ति और जयचन्द्र स्वर्गसुख भोग के पट्टाधीश श्री विश्वभूषण (फाल्गुन शुक्ल कर हस्तिनापुर में श्रीविमल नामक | ११ बुधवार वि० सं० १७३८) इत्यादि रचित । वैश्य की धर्मपत्नी श्री लक्ष्मीमती के गर्भ ३. हिन्दी भाषा कथा बचनिका--- Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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