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________________ ( २०७ ) अजैर्यष्ट्रष्य वृहत् जैन शब्दार्णव अजैर्यष्ट्रव्यं को बिना मूल्य ॥ और प्रमाणों के साथ गहरा शास्त्रार्थ २. मु. केसरीमल मोतीलाल राँका, हुआ। 'पर्वत' राजा 'घसु' का गुरु भ्राता आनरेरी मैनेजर, जैन पुस्तक प्रकाशक और गुरु पुत्र था। अतः राजा ने विधवा कार्यालय 'ज्यावर' की ओर से संग्रहीत घ गुरुपत्नी (पर्वत की माता) से बचनबद्ध प्रकाशित । इस में २१ सुप्रसिद्ध अजैन हो जाने के कारण न्याय अन्याय की ओर विद्वानों की सुयोग्य सम्मतियों का सारांश भ्यान न देकर अन्तमें पर्वत ही को जिताया रुप संग्रह है। मूल्य ). अजैनों को बिना जिससे राजा तो दुर्नामता और दुर्गत मूल्य ॥ का पात्र बना ही, पर माँस लोलुपी पर्वत अजैर्यष्ट्रव्यं (अजैोतव्यं )--यह एक का साहस भी पवित्र वेद धापयों का अर्थ संस्कृत भाषा का वाक्य है जिसका अर्थ का कुअर्थ लगाने में इतना बढ़ गया कि है 'अजों से अर्थात् न उत्पन्न होने योग्य फिर उसने घेद घायों के सहारे एक त्रिवर्षे यव या शालि से यश करना 'महाकाल' नामक असुर की सहायता चाहिये ॥ से यक्षों में अनेक पशुओं को स्वाहा कर ___ 'अजैर्यष्ट्रव्यं' और 'अजैोतव्यं' यह यज्ञ देने का पूर्ण जी खोल कर प्रचार किया ॥ के प्रकरण में आये हुए वेद-वाक्य हैं जिन .. नोट १.-राजा बसु अब से लगभग के अज' शब्द का अर्थ लगाने में एक बार | १० या ११ लाख वर्ष पूर्व तिरहुत्त प्रान्त या 'नारद' और 'पर्वत' नामक दो ब्राह्मण मिथिलादेश के हरिवंशी राजा अभिचन्द्र पुत्रों में परस्पर भारी वाद विवाद हुआ और उसकी उग्रयंशी रानी 'वसुमती(श्रीमती, था । 'नारद' तो गुरु आम्नाय से सीखा सुरकान्ता)का पुत्र था और २०वें तीर्थकर भी हुआ परम्परायसिद्ध और क्रियावल या| 'मुनिसुव्रतनाथ' की सन्तान में उन की २२वीं व्युत्पत्ति से बननेवाला तथा प्रकरणानुसार, पीढ़ी में जम्मा था । उस समय इसके राज्य अर्थ 'न जायते इत्यजाः' अर्थात् जिनका | की सीमा पूर्व में विदेह या तिरहुत प्रान्त जन्म नहो वे अज हैं, जो पृथ्वी में बोने से ( उत्तरी विहार ) से पश्चिम में चेदिराष्ट्र (वि. न उत्पन्न हो ऐसे त्रिवर्षे पुराने धान | ध्याचल पर्वत के पास जबलपुर के उत्तर)तक (चावल या जौ), यह लगाता था । परन्तु थी । बसु के पिता अभिचन्द्र ने जो 'ययाति' मांस लोलुपी ‘पर्वत' इस 'अज' शब्इ का और विश्वावसु' नामों से भी इतिहासप्रसिद्ध परम्पराय और प्रकरण विरुद्ध सामान्य हैं बुंदेलखण्ड और धवलपुर (जबलपुर) के लोक प्रसिद्ध रूढ़ि अर्थ 'छाग' या 'बकरा' मध्य के देश को अपने अधिकार में लाकर लगाता था। यहाँ वेदि राज्य स्थापन किया और शुक्तमती ____ अन्त में इस झगड़े को न्याय जब नदी के तटपर शुक्तमती (स्वस्तिकावती) न्यायप्रसिद्ध न्यायाधीश राजा 'बसु' के नामक नगर बसा कर उसी को अपनी राजपास पहुँचा तो राजो के सन्मुख राजसभा धानी बनाया । इस समय अयोध्या में | मध्य बहुजन की उपस्थिति में कुछ देर इस्वाकुवंशी राजा सगर का राज्य था जो तक दोनों का अपनी अपनी युक्तियों 'हरिषेन' नामक १०वें चक्रवती की संतान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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