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________________ अजोग वृहत् जैन शब्दार्णव अज्ञान परीषह में उसके देवलोक प्राप्त करने से लगभग एक मूर्खता, अज्ञानता, अविवेक, न जानने सहस्र बर्ष पीछे जन्मा था । (पीछे देखो वाला, मूर्ख, अजान शान रहित अविवेकी, शब्द 'अज', पृष्ठ १५८)॥ मिथ्या शानी, आत्मज्ञानशून्य, मन्दमानी, नोट२.- पर्वत की माता का नाम अल्पज्ञ। । 'स्वस्तिमती' और पिता का नाम 'क्षीरक (२) मिथ्यात्व अर्थात् तत्वार्थ के दम्ब' था जो ब्राह्मण कुलोत्पन्न बड़ा शुद्ध विपरीत श्रद्धान ( अतत्व श्रद्धान, कुतत्व आचरणी, धर्मश, वेद बेदांगों का ज्ञाता, श्रद्धान, तत्वार्थ ज्ञान रहित श्रद्धान ) के और स्वस्तिकावती नरेश अभिचन्द्र का मूल ५ भेदो--१. एकान्त, २. विपरीत, राजपुरोहित था । राजकुमार वसु, एक ३. विनय, ४. संशय, ५. अशान,--में से ब्राह्मण पुत्र नारद, और पर्यत, यह तीनों एक अन्तिम भेद (आगे देखो शब्द सहपाठी थे और इसी राजपुरोहित से विद्या. 'अशान मिथ्यात्व', पृ.२०६) ॥ पन करते थे। अज्ञानजय-अशान परीषह जय । ( आगे (रि. सर्ग १७ श्लोक ३४-१६०; ] देखो शब्द 'अज्ञान परीषह जय' पृ.२०६)। पद्मपुराण पर्व ११:२० पु० पर्ष६७ । दलोक १५५-४६१ अज्ञानतप-शान शून्य तप, तत्त्वार्थ ज्ञान ) रहित तप, आत्मज्ञान रहित तप; अजोग (अजौगिक, अयौगिक)-पुष्क- | यह तप जिसके साधन में अज्ञानवश रार्द्धद्वीप की पश्चिम दिशा में विद्युन्माली या वस्तु स्वरूप की अनभिज्ञता से भाव, मेरु के दक्षिण भरतक्षेत्रान्तर्गत आर्यखंड प्यास, जाड़ा, गर्मी आदि के अनेक प्रकार की अतीत चौबीसी में हुए तृतीय तीर्थङ्कर । के कष्ट सहन कर कर के शरीर को सुखाया ( आगे देखो शब्द 'अढ़ाईद्वीप पाठ' के नोट या तपाया जाय और स्वर्गीकी देवांगनाओं ४ का कोष्ठ ३)॥ संबन्धी भोग विलासों की प्राप्ति या अन्य प्रज्जुका-(१) १६ स्वर्गों में से प्रत्येक किसी लौकिक इच्छा की पूर्ति की अभि दक्षिणेन्द्र की आठ आठ अनदेवियों या लाषा या लालसा से अनेकानेक व्रतोपपट्टदेवियों में से सातघी सातवीं अग्र-देवी घास आदि किये जाय:अथवा वेसर्व क्रिया: का नाम । कलाप जो आत्म अनात्म के यथार्थ ज्ञान (त्रि. गा.५१०) से शून्य रह कर काम, क्रोध, मान, माया, (२) नाटकीय परिभाषा में इस 'अ- | लोभ, आदि को जीतने के उपाय बिना ज्जुका' शब्द का प्रयोग 'वेश्या' के लिये केवल लोक रिझाने या लोक पूज्य बनने किया जाता है ॥ आदि की वाञ्छा से किये जांय "अज्ञान (३) यह 'अज्जुका' शब्द तथा अउजु, तप" कहलाते हैं । अज्जू और अज्जूका, यह चारों शब्द प्रज्ञानपरीषह-अज्ञान जन्प कप्ट, शान'बड़ी बहिम' के अर्थ में भी आते हैं। । प्राप्ति के लिये बारम्बार शास्त्र स्याध्याय, अज्ञान ( अज्ञान )--(१) न जानना, | या गुरुउपदेशश्रवण आदि अनेक उपाय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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