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________________ ( २०६ ) अजीवाभिगम वृहत् जैन शब्दार्णव अजैन विद्वानों की सम्मतियां | ( पीछे देखो शब्द 'अजीगत हिंसा', | अजैन विद्वानों की सम्मतियांपृ. १६२ )॥ एक टूकट (पुस्तिका ) का नाम जिस में — ( तत्वार्थ. अ. ६ सू. ७, ८, ६) जैनधर्म के सम्बन्ध में अनेक सुप्रसिद्ध अजीभिगम-देखो शब्द 'अजीवअ- | अजैन विद्वानों की सम्मतियों का बड़ा भिगम', पृष्ठ १६१ ॥ उत्तम संग्रह है । इस नाम का ट्रैक्ट भजन-जैनधर्म वर्जित, जैनधर्म विमुख निम्नलिखित दो स्थानों से प्रकाशित जिनाशाबाह्य, जैनधर्म के अतिरिक्त किसी १. श्री जैनधर्म संरक्षिणी सभा, 'अमअन्य धर्म का उपासक ॥ रोहा' ( जि० मुरादाबाद ) की ओर से दो ___ नोट-'जिन' शब्द जित् धातु से | भागों में । प्रथम भाग में (१) श्रीयुत महा बना है जिस का अर्थ है जीतना या विजय | महोपाध्याय डाक्टर सतीशचन्द्र विद्याप्राप्त करना । अतः 'जिन' शब्द का अर्थ है भूषण एम० ए०, पी० एच० डी०, एफ० जीतने वाला या विजय पाने वाला, इन्द्रियों आई० आर० एस०, सिद्धान्तमहोदधि और कर्म शत्रुओं को जीतने वाला तथा प्रिंसिपल संस्कृत कालिज कलकत्ता,(२ ) त्रैलोक्य-विजयी-कामशत्रु पर पूर्ण विजय श्रीयुत महामहोपाध्याय सत्यसम्प्रदाप्राप्त करने घाला । अतः कामदेव, पांचों याचार्य सर्वान्तर पण्डित स्वीमि राममिश्र इन्द्रियों और कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त जी शास्त्री भूतपूर्व प्रोफ़सर संस्कृत काकरने वाले परम पूज्य महान पुरुषों के अनु लिज बनारस, (३) श्रीयुत भारत गौरव पायी अर्थात् उन की आशानुसार चलने के तिलक पुरुषश्रोमणि इतिहास मानधाले और उन्हीं को आदर्श मान कर उन की नीय पं० वालगङ्गाधर तिलक, भूतपूर्व समान कामधिजयी और जितेन्द्री बनने सम्पादक 'केशरी' और (४) सुप्रसिद्ध श्रीका निरन्तर अभ्यास करते रहने वाले व्यक्ति युत महात्मा शिवव्रतलाल जी एम० ए० को जैन' कहते हैं । और पदार्थों के वास्तधिक सम्पादक 'साधु' 'सरस्वती भण्डार' आदि स्वरूप और स्वभाव को 'धर्म' कहते हैं । अतः कई एक उर्दू हिन्दी मासिकपत्र, प रचयिता | जिस धर्म में जीवादि पदार्थों का वास्तधिक | विचारकल्पद् म आदि ग्रन्थ, ष अनुवादक स्वरूप दिखा कर जितेन्द्रिय बनाने और विष्णुपुराणादि, इन ४ महानुभावों की 'जिनपद' (परमात्मपद) प्राप्त कराने की , सम्मतियों का संग्रह है। और दूसरे भाग वास्तविक शिक्षा हो उसे 'जैनधर्म' या में श्री युत घरदाकान्त मुख्योपाध्याय एम० 'जिनधर्म' कहते हैं । इस कारण जो व्यक्ति ए. और रा० रा. वासुदेव गोविन्द आपटे जितने अंश जितेन्द्रिय है या जितेन्द्रिय बनने बी० ए० इन्दौर निवासी, इन दो महानुका अभ्यास कर रहा है वह उतने ही अंशों भावों की सविस्तर सम्मतियों का संग्रह में धास्तधिक जैन या 'जैनधी ' है। केवल है। इन दोनों भागों की सम्मतियां इसी जैनकुल में जन्म ले लेने मात्र से वह वास्त- 'वृहत् जैनशब्दार्ण' के रचयिता की संप्रविक 'जैनधर्मी' नहीं है। हीत हैं। मूल्य ॥ और =)। है। अजैनों For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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