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________________ (१८) - - अजितसेन-आचार्य वृहत् जैन शब्दार्णव अजितसेन-चकी . अर्थ--श्री आर्यसेन आचार्य के अनेक प्रतिमा का विन्ध्यागिरि की 'गोमन्त' ( गोगुणगण को धारण करने वाले और तीन लोक म्मट ) नामक चोटी पर निर्माण और उस के गुरु श्री अजितसेन आचार्य जिसके गुरु की प्रतिष्ठा अपरिमित धन लगा कर कराई। हैं वह श्री गोम्मट राजा (चामुण्डराय) थी और जिस का नाम उस पहाड़ी के नाम जयवन्त रहो ॥ ७३३ ॥ ही पर 'श्री गोमन्तस्वामी' या 'गोम्मटेश्वर' जम्हि गुणा विस्संता . लोक प्रसिद्ध हो गया होगा इसी से सम्भव ___गणहर देवादिदेढिपत्ताणं । है चामुण्डराय को नाम भी 'गोम्मटराय' प्रसिद्ध हुआ हो । अथवा यह भी संभव है सो अजिय सेणणाहो कि अन्य किसी कारण से चामुण्डराय का जस्स गुरू जयउ सो गयो।।६६६॥ नाम अन्य उपनामों के समान' 'गोमन्तराय' ____ अर्थ--जिस में बुद्धिआदि ऋद्धि-प्राप्त या 'गोम्मटराय' पड़ गया हो और फिर इस गणधर देवादि मुनियों के गुण विश्राम पा की प्रतिष्ठा कराई हुई 'श्री बाहुबली' की प्रके ठहरे हुए हैं अर्थात् गणधरादिकों के स- तिमा का नाम, तथा पर्वत के जिस शिखर | मान जिसमें गुण हैं ऐसा अजितसेन नामा- पर यह प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई गई उन दोनों मुनिनाथ जिस का व्रत (दीक्षा ) देने वाला ही का नाम 'गोमन्तराय' या 'गोम्मटराय' के गुरु है वह चामुण्डराय सर्वोत्कृष्टपने से जय नाम पर 'गोम्मटेश्वर' और 'गोम्मटगिरि' पायौ ॥ ६६६ ॥ प्रसिद्ध हो गया हो । ( देखो शब्द 'अण्ण' नोट-उपर्युक्त गाथा ७३३ से जाना और 'चामुंडराय')" जाता है कि 'चामुण्डराय' का समर-धुरन्धर, अजितसेन-चक्री-अष्टम तीर्थहूर 'श्री. वीरमार्तण्ड; सम्यक्तरत्नाकर आदि अनेक चन्द्रप्रभ' का पञ्चम पूर्वभव-धारी एक उपनामों में से एक नाम 'गोम्मटराय' भी धर्मश चक्रवर्ती राजा॥ था । इससे ऐसा भी अनुमान होता है कि यह अजितसेनचक्री अलका देश की उपर्युक्त पश्च-संग्रह' नामक सिद्धान्त ग्रन्थ राजधानी 'कोशलापुरी' के राजा 'अजितंजिसे चामुण्डराय या गोम्मटगय की प्रा. जय' का पुत्र था जो महारानी 'अजितर्थना पर ही गून्थकर्ता ने रचा था और जिस | सेना' के उदर से उत्पन्न हुआ था । की कर्णाटकवृत्ति भी इसी 'गोम्मटराय' ने राजा अजिसअय ने जय राजकुमार की थी उसका दूसरा नाम गोम्मटसार' | अजितसेन को युवराजपद देदिया तब गोम्मटराय ही के नाम पर लोकप्रसिद्ध पूर्व जन्म का एक शत्र 'चंडरुधि' नामक हुआ हो॥ 'असुर उसे हर ले गया। शत्रु के पंजे से चामुण्डराय का यह 'गोम्मटराय' | छूटने पर 'अरिंजयदेश' के विपुल पुराधीश उपनाम इस कारण से प्रसिद्ध हुआ ज्ञात 'जषधर्मा' की शशिप्रभा नामक पुत्री के होता है कि इस ने जो 'श्री ऋषभदेव' के साथ अजितसेन का विवाह हुआ। पुत्र भरतचक्रवर्ती के लशुभ्राता 'श्री बाहु- आदित्यपुर के विद्याधर राजा धरणीधर बली' स्वामी की मुनि-अवस्था की विशाल | को युद्ध में परास्त करने के पश्चात् जब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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