SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३३ ) बृहत् जैन शब्दार्णव अङ्गारमर्दक नोट ३--इन ४६ उपर्युक्त दोषों के अतिरिक्त एक " अधः कर्म' जिस के ४ भेद | हैं और एक 'अकारण' जिस के ६ भेद हैं, यह | दो मूल भेद या दश उत्तर भेद रूप त्याज्य दोष और भी हैं। यह अधिक निकृष्ट होने से अलग गिनाए गए हैं ॥ ( इन सर्व दोषों के अलग अलग नामादि जानने के लिये देखो शब्द 'आहार दोष' ) ॥ अङ्गारमर्दक-इ‍ 5- इस नाम से प्रसिद्ध 'रुद्र'देव' नामक एक अभव्य जैनाचार्य | अ. मा. अङ्गारवती - स्वर्णनाभपुर के एक विद्याधर राजा 'चितवेग' की स्त्री जिस के पुत्र का नाम 'मानसवेग' और पुत्री का नाम 'वे गत्रती' था जो 'श्रीकृष्ण' के पिता 'श्री वसुदेव' की एक पत्नी थी ॥ ( देखो ग्रन्थ वृहत् विश्वचरितार्णव' या हरिवंशपुरण सर्ग २४, ३० ) अङ्गारिणी -हाथ - प्रज्ञप्ति. रोहिणी आदि अनेक दिव्य विद्याओं में से एक विद्या का नाम । ( देखो शब्द 'अच्युता' नोटों सहित ) अङ्गिर- देखो शब्द 'अग्निर' ॥ अङ्गुतया पांव की शाखा अर्थात् अंगुलि, अँगुली या उँगली; एक अंगुलि की चौड़ाई बराबर माप, म यव ( जव या जौ ) की मध्य-भाग की मुटाई बराबर माप; विक्रम की सातवीं शताब्दी में विद्यमान कामसूत्र के रचयिता वात्स्या यन मुनि का अपर नाम; उड़ीसा प्रान्त का एक देशीराज्य ( महानदी के उत्तर जो सन् १८४७ से अँगरेज़ी राज्य में स Jain Education International अंगुल म्मिलित कर लिया गया है। इस की मुख्य नगरी का नाम भी 'अंगुल' ही है । नोट १--अंगुल निम्न लिखित तीन प्रकार का होता है: (१) उत्सेधांगु -- यह ८ यव या ६४ सरसों की मुटाई बराबर का एक माप है जो 'श्री महावीर' तीर्थकर के हाथ की अंगुलो की चौड़ाई से ठीक अर्द्धभाग और उन के निर्वाण की सातवीं शताब्दी में विद्यमान 'श्री पुष्पदन्ताचार्य' और 'श्री भूतवत्याचार्य' के हाथ की अंगुलि की चौड़ाई की बराबर है जब कि कंठस्थ जिनवाणी का कुछ भाग वर्त्तमान पञ्चम काल में सब से प्रथम पटखंड सूत्रों (प्रथम श्र ुतस्कन्ध ) में लिपिबद्ध किया गया था । यह अंगुल-माप आजकल के साधारण शरीरवाले मनुष्यों की अंगुलि से कुछ बड़ा है । ( देखो शब्द " अङ्कविद्या" का नोट ७ और "अग्रायणीपूर्व" के नोट २, ३ ) ॥ (२) प्रमाणांगुल - यह माप उपर्युक्त उत्लेघांगुल के माप ५०० गुणा बड़ा है जो इस भरत क्षेत्र के वर्त्तमान अवसर्पिणीकाल के चतुर्थ विभाग में हुए प्रथम तीर्थकर "श्री ऋषभदेव स्वामी" की या उन के पुत्र प्रथम चक्रवर्ती "भरत' की अंगुलि की चोड़ाई की बराबर है ॥ (३) आत्मांगुल - -इस का प्रमाण कोई एक नियत नहीं है । 'भरत' व 'ऐरावत' आदि क्षेत्रों के मनुष्यों की अपने अपने समय में जो जो अंगुलि है उसी के बराबर के माप का नाम "आत्मांगुल" है ओ प्रत्येक समय मैं शरीर की ऊँचाई घटने से घटता और बढ़ने से बढ़ता रहता है अर्थात् हर समय के हर मनुष्य का अपने अपने अंगुलि की For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy