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________________ ( १३२ ) अङ्गारक वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्गारदोष वेगा नामक स्त्री के भाई चंडवेग के हाथ | की तीन अविवाहित पुत्रियाँ, 'चन्द्ररेखा', से युद्ध में परास्त हुआ था जब कि 'वसु 'विद्युतप्रभा' और 'तरङ्गमाला' मनोदेव' ने उसी युद्ध में उसके पिता त्रिशिखर' गामनी विद्या सिद्ध कर रही थीं और दो। को मार कर और 'मदनवेगा' के पिता को चारण ऋद्धिधारी मुनि ध्यानारूढ़ थे और त्रिशिखर के कारागार से छुड़ा कर ‘मदन- जिस अग्नि को 'पवन-अंजय' के पुत्र 'हनुवेगा' से विवाह किया था जिससे प्रथम पुत्र मान' ने, जब कि वह श्रीरामचंद्र की ओर "अनावृष्टि” नामक उत्पन्न हुआ। ( अंगार से दूत पद पर नियुक्त हो कर किकन्धासम्बन्धी विशेष कथा जानने के लिये देखो पुरी से लङ्का को जा रहा था। वर्षायंत्र की प्रन्थ 'वृहत् विश्वचरितार्गव' या हरिवंश सहायता से बुझाई थी॥ पुराण, सर्ग२४, श्लोक ८४-८६, व सर्ग (देदो ग्रन्थ 'बृहत् विश्वचरितार्णव' २५, श्लोक ६२ आदि)॥ या पद्मपुराण सर्ग ५१) अङ्गारक-(१) चिङ्गारी; मंगल ग्रह; एक अङ्गारदोष-अति आसक्तता या लोलुपता तेल जो सर्व प्रकार के ज्वरों को दूर करता से किसी वस्तु को ग्रहण करना । भोजन है; भीमराज नाम से प्रसिद्ध एक कुरंटक सम्बधी एक प्रकार का दोष; अतिगृद्धता से भोजन करने का दोष; निग्रन्थ दिगम्बर वृक्ष जिसे भृङ्गराज भी कहते हैं ॥ मुनियों के आहार सम्बन्धी त्याज्य दोषों के - (२) श्रीकृष्णचन्द्र के पिता 'वसुदेव' की एक श्यामा'नामक स्त्री के पिता अशनिवेग' जो मूलभेद ७ और उभेद ४६ हैं उन में के बड़े भाई राजा 'ज्वलनवेग' का एक पुत्र, से एक उस दोष का नाम जो लोलुपता के जिसने श्यामा के पिता को बन्दीगृह में साथ भोजन करने से लगता है । वसतिका डाल रखा था और पति 'वसुदेव' को भी अर्थात् दिगम्बर मुनियों के लिये आवश्य तानुसार ठहरने के स्थानसम्बन्धी जो जब सोते समय एक बार हरण कर लिया त्यागने योग्य ४६ दोष हैं उन में से वह तो श्यामा ने बड़े साहस के साथ उससे दोष जो मोहवश वसतिका को ग्रहण करने युद्ध करके उसकी आकाशगामनी विद्या या उस में अधिक समय तक ठहरे रहने (वायु-यान यो विमान') छेद दी थी॥ से लगता है ॥ ( देखो ग्रन्थ 'वृहत् विश्वचरितार्णव' या ___ नोट १-आहारसम्बन्धी दोषों के ७ हरिबंश पुराण, सर्ग १६ श्लोक ६७ से मूलभेद और उन के ४६ उरभेद निग्न । १०९ तक व सर्ग २२ श्लोक १४४ आदि; प्रकार हैं:-- सर्ग २४ दलोक ३१-३४)। (१) १६ भेदयुक्त उद्गम दोष (२) १६, (३) दक्षिण देशीय एक विद्याधर भेदयुक्त उत्पादन दोष (३) १० भेदयुक्त एषण राजा का पुत्र, जिसने दक्षिण भारत के एक (अशन ) दोष (४) संयोजन दोष (५) प्रमा'दध मुख' नामक बन में षाग्नि से | णातिरेक दोष (६) अङ्गार दोष और (७) प्रज्वलित हो अग्नि लगा दी थी जहां धनदोष । उसी बन के निकटवर्ती 'दधमुख' नामक नोट २--यही उपयुक्त ४६ दोष व नगर के विद्याधर राजा 'गन्धर्वसेन' | सतिका सम्बन्धी भी हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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