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________________ ( ११७ ) अम्ल वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्गन्यासक्रिया नाम जो भारत वर्ष में गंगा और सरयू के (१०) प्रश्न व्याकरणाङ्ग (११) धिपाकसंगम के निकट संयुक्त प्रान्त और बंगाल सूत्राङ्ग (१२) दृष्टि वादाङ्ग। (देखो शब्द प्रान्त के मध्य है जिस की राजधानी भा- "अक्षरात्मक श्र तज्ञान" और 'अंग प्रविष्टगलपुर के निकट 'चम्पापुरी' थी॥ श्रु तशान'' और "अङ्गवाह्य श्रु तशान'') । (४) चम्पापुर नरेश “बलिराज" के अङ्गचलिका-द्वादशाङ्ग ग्रन्थों का परिएक क्षेत्रज पुत्र का नाम जो बलि की स्त्री | शिष्ट भाग ( स्वेताम्बर ) ॥ "सुदेष्णा" के गर्भ से एक जन्मान्ध तपस्वी "दीर्घतमा" के वीर्य से जन्मा था। इसके अङ्गज-(१) पुत्र, पुत्री, रुधिर,केश, पीड़ा, चार सहोदर लघु भ्राता (१) बङ्ग (२) काम, मद, मोह, शरीर से उत्पन्न होने कलिङ्ग (३) पुंड और (४) सूक्ष थे। वाली प्रत्येक वस्तु । ___ (५) श्री रामचन्द्र के मित्र बानरवंशी (२) आगामी उत्सर्पिणीय काल के किष्कन्धानरेश सुग्रीव' का बड़ा पुत्र जिस तृतीय भाग “दुःखम सुखम" नामक में को लघमाता अङ्गद था। यह दोनों भाई होने वाले ११ रुद्रों में से अन्तिम रुद्र का माम। सुग्रीव की रागी सुतारा के गर्भ से जन्मथे। श्री रामचन्द्र के राज्य-वैभव त्याग करने | (३) आगामी २४ काम देवों में से के समय 'अङ्ग' ने अपने पिता 'सुग्रीव' के 'एक कामदेव का नाम । साथ ही मुनि-दीक्षा ग्रहण करली और इस (४) रामरावण युद्ध के समय लड़ने लिये किकन्धाधुरी का राज्य इसके छोटे | ___ वाले अनेक योद्धाओं में से राम की सेना भाई अङ्गद को दिया गया। के एक वीर योद्धा का नाम ॥ (६) निमित्त शान के आठ भेदों अर्थात | (देखो प्र. वृ. वि. च.) अन्तरीक्ष, भौम, अङ्ग, स्वर, स्वप्न, लक्षण, | अङ्गमित्-एक गृहस्थ का नाम जिस ने व्यञ्जन, छिन्न, में से तीसरे भेद का नाम श्री पार्श्वनाथ के समीप दीक्षा ली थी। जिस से किसी के अंगोपांग देल कर या स्पर्श कर या कोई अंग फरकने को देखकर | | अङ्गद-(१) बाजू, बाजूबन्द, बाहु-भूषण, उस के त्रिकाल सम्बन्धी सुख दुखादि अङ्गदान करने वाला, दक्षिण दिशा के का ज्ञान हो जाय ॥ हाथी की हथनी ॥ (७) अक्षरात्मक श्र तज्ञान के आधा (२) आठवें बलभद्र श्री रामचन्द्र के राङ्ग' आदि द्वादश भेदों में से प्रत्येक मित्र वानर वंशी राजा "सुग्रीव" का छोटा पुत्र जिस का बड़ा भाई अंग था। का नाम ।। ___ द्वादशांग के नाम-(१) आचाराङ्ग इसनाम के अन्य भी कई पुराणप्रसिद्ध ! (२) सूत्रकृताङ्ग (३) स्थानाङ्ग (४) सम .. पुरुष हुए हैं ( देखो ग्रन्थ "वृहत विश्वचायाङ्ग (५) व्याख्याप्रशन्त्याङ्ग (६) धर्म चरितार्णव )। कथाङ्ग (७) उपासकाध्ययनाङ्ग (८) अन्तः | अङ्गन्यासक्रिया-तान्त्रिक क्रिया विकृशाङ्ग (8) अनुत्तरौपपादिकदशाङ्ग ) शेष; किसी देवता की आराधना या - - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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