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________________ ( ११८ ) अङ्गपण्णत्तो वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्गपाहुड़ उपास्ना में मंत्रों द्वारा अंग स्पर्श करना; | में हुआ। इन के पिता का नाम 'कुन्दश्रेष्ठि' दोनों हाथों की कनिष्ठा आदि अंगुलियों और माता का नाम कुन्दलता था । ११ वर्ष में पंच नमस्कार मंत्र का पाल कर के की वय में इन्होंने मुनिदीक्षा धारण की । ३३ दोनों हाथ जोड़ कर दोनों अंगूठों से वर्ष के उग्रतपश्चरण के पश्चात् ४४ वर्ष की ___ "ॐ ढां णमो अरहंताणं स्वाहा वय में मि० पौष कृ०८ विक्रमजन्म सम्वत् हृदये", यह मंत्र बोलकर हृदय स्थान में ४६ में अपने गुरु 'श्रीजिनचन्द्रस्वामि' के न्यास अर्थात स्पर्शन करे स्वर्गारोहण के पश्चात् उन की गद्दी के पट्टा___ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं स्वाहा ललाटे', धीश हुए । ५१ वर्ष १० मास १० दिन पट्टायह मंत्र बोल कर ललाट स्थान में धीश रह कर और ५ दिन समाधिमरण में न्यास कर | बिता कर ९५ वर्ष १०॥ मास की वय में मिती ___ "ॐ हूं णमो आइरियाणं स्याहा कार्तिक शुक्ला ८ विक्रमजन्म सम्बत् १०१ शिरसि दक्षिणे", यह मंत्र बोलकर शिर में स्वर्गारोहण किया। इसी दिन श्री 'उमाके दक्षिण भाग में न्यास करे; स्वामि' इनके पट्टाधीश हुये । श्री कुन्दकुन्दा___ "ॐ ह्रीं णमो उक्झायाणं स्वाहा चार्य (१) पद्मनन्दि (२) एलाचार्य (३) गृद्धपश्चिमे", यह मंत्र बोलकर शिर के | | पिच्छ (४) वक्रग्रीव (५) कुन्दकुन्द, इन 4 नामों पश्चिम भाग में न्यास करे, से प्रसिद्ध थे । यह जाति के पल्लीवाल थे। यह ___ “ॐ हुः णमो लोए सब्बसाहुणं स्वाहा नन्दिसंघ, पारिजातगच्छ और बलात्कारगण वामे", यह मंत्र बोल कर शिर के वाम में थे । इनके रचे (१) अंगपाहु (२) अष्टपाहुड भाग में न्यास करे।। (३) आचार पाहुड (४) आलाप पाहुइ (५) इसप्रकार अंग स्पर्श करने को अंगन्यास- आहारणा पाहुड़(६) उघात पाहुड़(७)उत्पादक्रिया कहते हैं । यह क्रिया “सकली. पाहुड़ (८) एयंम पाहुड़ (8)कर्मविपाक पाहुड करण विधान'' का एक अंग है जो (१०)क्रम पाहुड़ (११) क्रियासार पाहुड(१२) देवाराधना आदि में विघ्नशान्ति के क्षपण पाहुड़ (१३) चरण पाहुड (१४) चूर्णीलिए किया जाता है। ( देखो शब्द पाहुइ (१५) चूली पाहुड (१६) जीव पाहुड "सकली करण विधान")॥ (१७) जोणीसार पाहुइ (१८) तत्वसार पाहुष्ट अंग रणात्ती-देखो शब्द 'अंगप्रशप्ति' ॥ (१६) दिव्य पाहुंड (२०) दृष्टि पाहुड़ (२१) द्र व्य पाहुड़ (२२) नय पाहुड़(२३) निताय पाहुड़ अङ्गपाहुड़-श्री कुन्दकुन्दाचार्य रचित (२४) नियमसार पाहुड (२५) नोकर्म पाहुङ | ८४ पाहुप्रन्थों में से एक का नाम ॥ (२६) पञ्चवर्ग पाहुइ (२७)पञ्चास्तिकाय पाहुस, ___नो: १--श्री कुन्दकुन्दाचार्य तत्वार्थ- (२८) पयद्ध पाहुड (२०.) पुण्य पाष्टुड (३०)। सूत्र के रचयिता श्री ‘उमास्वामी' ( उमा- | प्रकृति पाहुड(३१) प्रमाण पाहुड़ (३२) प्रवचस्वाति ) के गुरु थे। इनका जन्म मालवादेश नसार पाहुड़ (३३) बन्ध पाहुड़ (३४) युद्धिमें बंदीकोटा के पास बारापुर स्थान में विक्रम- | पाहुड़ (३५) बोधि पाहुड़ (३६) भावसार पाजन्म से ५ वर्ष पीछे पीरनिर्वाण सम्वत् ४७५ हुड़ (३७) रत्नसार पाहुड़ (३८) लब्धि पाहुड़ AAL- -RRA For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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