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अङ्कावती वृहत् जैन शब्दाणव
अंकुश प्रावती-(१) पूर्व विदेह के "रम्यादेश" | लवण ( "अनगालवण" ) इस का की राजधानी [ देवो शब्द 'अङ्का (२) ] ॥
ज्येष्ठ भ्राता था। यह दोनों भाई श्री राम(२) पश्चिम महाविदेह के दक्षिण
चन्द्र की पट्टरानी सीता के उदर से युगल खंड की पहिली विजय की सीमा पर का
(ोठडे ) उत्पन्न हुए थे । यह दोनों। वजारा ( वक्षार ) पर्वत । इसका दूसरा |
भाई ( अनललवण और मदनांकु.) नाम "श्रद्धावान" भी है ॥
लवणांकुश या "लवकुश" नाम से (अ. मा., त्रि. ६६८)
अधिक प्रसिद्ध हैं । इन का जन्म सीता
महारानी के बनवास के समय श्रावण अंकुरारोपण-बीज से नई उत्पन्न होने
शुक्ला १५ को श्रवण नक्षत्र में अयोध्या से वाली कोपल जो मट्टी को फाड़ कर नि
१६० योजन दक्षिण को राजा घजूजल की कले उसका स्थापन या रचन या एक
राजधानी “पुण्डरीकिणी" नगरी में हुआ स्थान से दूसरे स्थान में लगाना ॥
था। इन के विद्यागुरु एक "सिद्धार्थअंकुरारोपण विधान-वेदी प्रतिष्ठा व | वाल्मीकि'' नामक गृहत्यागी क्षुलुक थे। इन्द्रध्वज आदि पूजन विधानों के जो कृष्णा ( तमसा) नदी के तट पर। प्रारम्भ में योग्य मंत्रादि से "अंकुरारोपण"
अपना समय धर्मध्यान में तथा लवकुश करने की एक विशेष विधि ॥
को विद्याध्ययन कराने में बिताते थे । बड़े नोट-इस नाम का एक संस्कृत ग्रन्थ भाई 'लव' को 'बनजङ्घ' ने अपनी पुत्री । भी है जो विक्रम सं० १६० के लगभग "शशिभूता' अन्य ३२ पुत्रियों सहित "नन्दिसंघ" में होने वाले श्री “इन्द्र- विवाही और छोटे भाई 'कुश' को पृथ्वी नन्दी" नामक एक दिगम्बर मुनि रचित है पुरनरेश 'पृथु' को पुत्री "कनकमाला" जो शान्तिचक्र पूजा, मुनिप्रायश्चित, प्र
भारीयुद्ध में उसे नीचा दिखा कर और तिष्ठापाठ, पूजाकल्प, प्रतिमासंस्कारारोपण
इन दोनों वीरों के बल पराक्रम और उच्च पूजा, मातृकायंत्र पूजा, औषधिफरूप, कुल का प्रत्यक्ष परिचय दिलाकर विवाही भूमिकल्प, समयभूषण, नातिसार, और पश्चात् इन वीरों ने अपने बल से थोड़े | इन्द्रनन्दिसंहिता आदि ग्रन्थों के रचयिता
ही समय में दक्षिा देशीय अनेक राजाओं और श्री नेमचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती के एक को परास्त कर के अपने आधीन किया गुरु थे।
और फिर अपने पूज्य पिता और पितृव्य (इ. द्रव्य०, प्रस्तावना) को उनके साथ गुप्त युद्ध कर के और अंकुश-(१) आँकड़ा, नियन्त्रण करने
इस प्रकार अपना बल पराक्रम दिखा कर वाला, दंड देने वाला, अधिकार में रखने उनके सम्मान-पात्र बने । इन की पज्य | वाला, वश में रखने वाला, हाथी को माता महाराणी सीता ने जब अपने पूज्य । वश में रखने का एक शस्त्र विशेष ॥ प्राणपति श्री रामचन्द्र की आशानुकूल
(२) अयोध्याधीश श्री रामचन्द्र का एक अपने पर्ण पतिवता होने की साक्षी सर्च पुत्र-इस का पूर्ण नाम मदनांकुश' था। अयोध्या वासियों को “अग्निपरीक्षा"
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