________________
a
m arom Tamatam
marASEEN
( ११४ ) अङ्का वृहत् जैन शब्दार्णव
अपारतंसक घनाङ्गुल के भईछेदोंकी
का नाम॥ संदृष्टि ... ... ... ... ३
घर्मा (घामा) अर्थात् रत्नप्रभा (७) आकार और अक्षर उभयरूप
नामक प्रथम नरक के खरभाग, पङ्क भाग! जैसे जघन्य की संदृष्टि
ज=. और अब्धहुल भाग । इन तीनों भागों में। पल्य के अर्द्ध छेदराशि के असंख्यातर्फे से सर्घ से ऊपर के "स्वरभाग' में (१) भाग की संदृष्टि ... ... ... ... चित्रा, (२) वजरा, (३) वैडर्या, (४) लोहि
तास्या, (५) असारकल्पा, (६) गोमेदा, घनलोक अधिक अनन्त की संदृष्टि ... (७) प्रयोला, (८) ज्योतिरसा, (६) अ
जना, (१०) अञ्जन मृलिका, (११) अङ्का ! किञ्चित अधिक अनन्त की संदृष्टि ... रख
(१२) स्फटिका, (१३) चन्दना, (१४) सर्वनिश्चित जन अनन्त की संधि ... ख
शंका, (१५) वकुला, (१६) शैला, यह १६ ॥ (:) आङ्कर, आकार और अक्षर, तीनों रूप
पृथ्वी हैं। यह सर्व क्रम से ऊपर से नीचे जैले एक अधिक कोटि की संदृष्टिको नीचे को प्रत्येक एक एक सहस्त्र महायोजन
मोटी हैं । इन में से ११वीं का नाम 'अङ्का एक कम कोटि की संदृष्टि ...को या को
है। इस में भवनयासी और व्यन्तर देवों के |
निवास स्थान है ॥ या को या को या को) या को ? नोट-प्रथम नरक सम्बन्धी १६ स-!
हस्त्र महायोजन मोटे 'खरभाग' की उपयुक्त
सर्व १६ पृथ्वीओं में तथा ८४ सहन महातीन कम अनन्त की संदृष्टि"ख या ख-३
योजन मो? “पङ्कभाग' में भवनवासी और
ध्यन्तरदेवों के निवास स्थान हैं और शेष ८० या ख या ख या ख) या या ख- -३
सहा मरे नीचे के तीसरे “अब्ब हुल भाग"
में नारकियों के उत्पन्न होने के “बिल' हैं । उत्कृष्ट परीतानन्त फी संदृष्टि"जजअ
(२) विदेहक्षेत्र के पूर्व भाग सम्बन्धी __ जो १६ विदेह देश उन में से सीतानदी
के दक्षिणतट पर के = विदेह देशों में से प्रतगंगुल के वर्गशलाका-१ १
पञ्चम "रम्या' नामक देश की राजधानी राशि की संदृष्टि
का नाम "अङ्का" है जो १२ योजन लम्बी नोट-अन्यान्य संदृष्टियाँ जानने के | ओर ६ योजन चौड़ी है। इस का नाम | लिये देखो शब्द “अर्थ संसृष्टि" ॥
"अङ्कायती" भी है। अङ्का (अङ्क)-(१) अधोलोक ( पाताल
(त्रि. गा. १४६-१४८,६८८,७१३)। लोक ) में की ७ पृथ्वीयों ( नरकों ) में से अङ्कावतंसक-ईशान इन्द्र के मुख्य सर्व से ऊपर के पहिले नरक के एक भाग विमान काम ( अ. मा.)।
२
"व२
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org