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________________ अङ्कसंदृष्टि ००००००००००००००००००००००००००००,०० ०००००००००००००००००० (२२ अङ्कों पर ५५ शून्य, सर्व ७७ अङ्क प्रमाण ) है ॥ यह ज्योतिर्विद गणकों की रीति से निकाली हुई संख्या यद्यपि पूर्णतयः ज्यों की त्यों ही नहीं है जो नोट ६ में बताई हुई संख्या है तथापि अङ्कों की स्थानसंख्या' ७७ दोनों में समान होने से परस्पर कोई बड़ा अन्तर नहीं है ॥ संदृष्टि - अङ्क सहनानी, अङ्कसङ्केत ॥ किसी महान संख्या या द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदि के परिमाण आदिक को सुगमता के लिये जिस सहनानी या संकेत या चिन्ह द्वारा प्रकट किया जाता है उसे 'संदृष्टि' कहते हैं । संदृष्टियां कोई अङ्करूप, कोई आकाररूप, कोई अक्षररूप, कोई किसी पंदार्थ के नामरूप, कोई अङ्क और आकार उभयरूप, कोई अङ्क और अक्षर उभयरूप, कोई आकार और अक्षर उभयरूप, इत्यादि कई प्रकार से नियत । इन में से अङ्क द्वारा प्रकट किये हुने संकेत को 'अङ्कसंदृष्टि और अन्य किसी प्रकार किये हुए संकेत को 'अर्थसंदृष्टि' कहते हैं ॥ प्रकट संदृष्टियों के कुछ उदाहरणः (१) अङ्करूप जैसे जघन्यसंख्यात की संदृष्टि २ १५ उत्कृटसंख्या की संदृष्टि जघन्यपरीता संख्यात की संदृष्टि. १६ जघन्यपरीतानन्त की संदृष्टि ૫૬ ६ घनांगुल की संदृष्टि (२) आकाररूप जैसे संख्यांत की संदृष्टि ( १९३ ) वृहत् जैन शब्दार्णव असंख्यात की संदृष्टि जगत्प्रतर की संदृष्टि Jain Education International ... ...... ... घनलोक की संदृष्टि प्रभृत या इत्यादि की संदृष्टि संकलन की संदृष्टि व्यवकलन की संदृष्टि की दृष्टि गुणा भाग की संदृद्धि.. अन्तर की संदृष्टि (३) अक्षररूप जैसे लक्ष की दृष्टि कोटि की संदृष्टि जघन्य की संदृष्टि अनन्त की संदृष्टि ० For Personal & Private Use Only ... (४) किसी पदार्थ के नामरूपजैसे की संदृष्टि आकाश ......... ... ... अङ्कसंदृष्टि ... ... ... ...... ज ख सूत्रांगुल के अर्द्धछेदों की संदृष्टि छेछे ""E या ८. + १ की २ की ३ की संदृष्टि काल, लोक. गुप्ति: योग ४ की संदृष्टि कपाय, गति (५) अङ्क और आकार उभयरूप - जैसे ६५५३६ ( पणतूठी ) की संदृष्टि ४२६४६६७२६६ (बादाल) की संदृष्टि १८४४६७४४० ७३७०६५५१६१६ ( एकठी) की संदृष्टि रज्जु (राजू) की संदृष्टि रज्जु प्रमाण प्रतरक्षेत्र की दृष्टि ४ (६) अङ्क और अक्षर उभय रूप - जैसे सर्व पुद्गलराशि की संदृष्टि १६ख त्रिकाल समय की संदृष्टि १६खख आकाश प्रदेश की संदृष्टि. १६खखख प्रतरांगुल के अर्द्धछेदों की संदृष्टि ...छेछे२ x + संदृष्टि विधु, इन्दु, चन्द्र संदृष्टि उपयोग ... ६५=. ···४२=. १८= · # www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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