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यह जग सब सुपने की माया) सुख सम्पति सब तरघर छाया,इसको हिरदय धरकर देख ॥
कौन. है साथी......॥ ११. एक चोर (जम्बकुमार की माता को दुखी देखकर)--
ग़म खायना, घबरायना, तेरा हम से लखा दुख जायना । क्यों रोवै, जलावे, सतावे जिया, गम खायना, घबरायना ॥ तेरा०॥ ज़र दौलत, धन सम्पत, इस पै लानत, हमको इसकी तनक अव चाह ना, परवाय ना, गम खाय ना, घबराय ना, तेरा हमले लखा दुख जाय ना ॥
माता मत देर करो चलके दिखादो हमको । चलके उस पुत्र से अब भेंट करादो हमको ॥ मुझको आशा है कि मन फेर सकंगा उनका ।
जो न मानेगें तो मैं साथी बनूगा उनका ॥ दुख पायना, गम खायना, तू मन में तनक घबरायना ॥ तेरा०॥
(२) गद्यात्मक हिन्दी रचना (क) जम्बकुमार नाटक से१. सूत्रधार (स्वयं)-अहोभाग्य है आज हमारा । उठत उमंग तरंग अपारा॥
. देख देख मन हर्षित होई । ज्ञानी गुनि सजन अवलोई ॥ अहाहा ! आज इस मंडप में कैली शोभा छा रही है , वाह वा ! कैसी बहार आरहो है। यहाँ आज कैसे कैसे विद्वान् , शानी और महान पुरुषों का समूह सुशोभित है, जिन का अपने अपने स्थान पर सुयोग्य रीति से आसन जमाये बैठना भी, अहा ! कैसा यथाचित है।
( उपस्थित मंडली से)-महाशयगण ! आप जानते हैं यह संसार असार है। इस का घार है न पार है। यहाँ सदा मौत का गर्म बाज़ार है। फिर इसमें अधिक जी उल. झाना निपट बेकार है । जो इसमें जी उलझाते हैं, मनुष्य आयु को बेकार गंवाते हैं । पीछे पछताते हैं और अन्त समय इस दुनिया से यू ही हाथ पसारे चले जाते हैं। सभ्यगण ! लक्ष्मी स्वभाव ही से चंचल है । इसके स्थिर रहने का भरोसा घड़ी है न एक पल है। संसार में भला कौन साहस के साथ कह सकता है कि यह अटल है । यह इन्द्रियों के विषय भोग भोगते समय तो कहने मात्र रसीले हैं । पर निश्चय आनिये अपनी तासीर दिखाने में काले नाग से भी कहीं अधिक विषीलेहैं ॥ जीतध्य पानी के बुलबुलेके समान है। जिसको इस रहस्य का यथार्थ ज्ञान है उसी का निरन्तर परमात्मा से ध्यान है। वास्तव में ऐसे ही महान पुरुषों का फिर सदा के लिये कल्याण है। ___ मान्यवर महाशयो! आपने नाटक तो बहुत से देखे होंगे पर पाप मोल लेकर दाम व्यर्थ ही फेंके होंगे। किन्तु इस समय जो नाटक आपको दिखाया जायगा, आशा है कि उससे आप में से हर व्यक्ति परम आनन्द उठायगा । संसार की अलारता और लक्ष्मी आदि की क्षणकता जो इस समय थोड़े से शब्दों में आपको दर्शाई है उसी की हू बहू तसवीर खींचकर इस अमूल्य नाटक में दिखाई है जिसमें आपका खर्च एक पैसा है न पाई है। कहिये महाशयगण ! कैसी उपयोगी बात आपको सुनाई है।
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