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कर्म की यही कुटिरता है। किसी का वश नहीं चलता है। ज़माना रंग बदलता है ॥१॥
कल जिनको हम प्रेम रष्टि से, समझे थे सुखकार ।
आज उन्हींसे प्रेम सोड़कर, जान लिये दुखभार । मन की कैसी चंचलता है, विचलता कभी सम्हलता है। जमावा रंग बदलला है ॥२॥
की काम के वश में फंस कर सकें पराई नार।
कमी प्रबल अरि कामदेव को जीत तजें निज दार ॥ आज मनकी दुर्बलता है, कल्ह चित की उजलता है ॥ ज़माना रंग बदलता है॥३॥
कोई पराये धनके लालच, मुसे पराया माल ।
कोई अपन धन दौलत को भी, जानें जी जंजाल ॥ लोभ में चित फिसलता है, साथ कुछ भी नहीं चलता है ॥ जामाना रंग बदलता है॥४॥
तन धन सब चेतन हैं चंचल, एक अटल जिन नाम ।
कुछ दिन का जीवन जगमें है, शीघ्र करो निज काम ॥ मनुषभक यही सफलता है । मौतका समय न टलता है ॥ ज़माना रंग बदलता है ॥५॥ (१०) जम्बूकुमार की एक स्त्री--
मम प्रीतम प्यारे प्राणाधारे, जरा तो इधर नज़र कर देख । . .
हम रूपवती, लावण्यवती, तुम प्राणपती दिल भरकर देख ॥ जम्बृकुमारकौन है साथी किसका जममें, दारा सुत मित सबही ठग हैं, सेठ दुलारी चित धर देख ।। तन धन यौवन सब आसार है, बिजली का सा चमत्कार है, अय बेखबर समझ कर देख ॥ दूसरी स्त्री--
क्यों हमको छोड़ो मुंह को मोड़ो, दया को चित में धर कर देख । लेश न दुख है भोगन सुख है, निश्चय नहीं तो कर कर देख ॥ मम प्रीतम प्यारे प्राणाधारे, ज़रा तो इधर नज़र कर देख ।
हम रूपवती लावण्यवती तुम प्राणपती दिल भर कर देख ॥ जम्बकुपार
भोग विलासों में क्या रस है, क्षण २ निकसे तन का कस है, चित में ज़र ज़बर कर देख । विषय भोग सब कड़े रोग हैं, त्याग करें बुध सो निरोग हैं, निश्चय नहीं तो कर कर देख ॥ कोन है साथी किसका जगमें, दारा सुत मित सब ही ठग हैं, सेठ दुलारी चित धर देख ।
तन धन यौवन सब असार है, बिजली का सा चमत्कार है, अय बेखबर समझ कर देख ॥ तीसरी स्त्रीबन में जाओ दुःख उठाओ फिर पछताओ समझ कर देख । बन की ठोकर झेलो क्योंकर दिल को ज़रा पकड़ कर देख ॥ मम प्रीतम प्यारे......॥ जम्बकुपार- ..... मात पिता सुत सुन्दर नारी, अन्त समय कुछ साथन जारी,चारों ओर नजारकर देख ।
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