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________________ ( १०१ ) अङ्कगणना वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्कगणना लवणसनुद्र में के सारे जल के यदि सरसों किया गया है । के दाने की बराबर के छोटे छोटे जलविन्दु (१६) २१६ या २५६२ अर्थात् २ किये जावे तो उन की संख्या उपयुक्त नं० का १६वां बल या २२६ का द्वितीय बल या (६) में वर्णित अनवस्था कुंड की सरसों की । २५६ का वर्ग ६५५३६ है । इसे 'पणट्ठी' या संख्या १६७६१२०६२६६६६८००००००००००० 'पण्णट्ठी' कहते हैं । यह द्विरूप वर्गधारा co०००००००००००००००००० | का चौथा स्थान है । पणट्ठी का वर्ग ४२९४ णित अर्थात् उसके ५ सयभागों में से ३ ९६ ७२९६ है । यह संख्या २३२ अर्थात् २ का भाग अधिक १२ गुणी २४६३६६२३७१७६५९ | ३२वाँ बल है। इसे 'वादाल' कहते हैं। यह ६८ ००००००००००००००००००००००००००० | द्विरूप वर्गवारा का पाँचवां स्थान है। वा००० (४६ स्थान प्रमाण, १६ अङ्क और ३० | दाल का वर्ग १८४४६७४४०७३७०९५५१६१६ शून्य ) है और यदि पाताल कुंडों के और है। यह संख्या२६४ अर्थात् २ का ६४ वां समभूमि से ऊंवे उठे हुए जल सहित उस बल है । इसे 'एकट्ठी' कहते हैं । यह द्विरूप के सम्पूर्ण जल के ऐसे ही जलबिन्दु किये. वर्गधारा का छटा स्थान है। वादाल का घन जावे तो उनकी संख्या इस उपयुक्त संख्यासे | ७९२२८१६२५,१४२६४३३७५६३५४३९५०३३६ कुछ अधिक १७ गुणी होगी॥ ( २६ अङ्क प्रमाण, अर्थात् उनासी करोड़, (१५) लवणसमुद्र के सम्पूर्ण जल की बाईस लाख, इक्यासी हजार, छह सौ पचीस तोल (१००८ पाताल कुंडों के और समभूमि | महासंख; एक सौ बयालीससंख, चौंसठ से ऊँचे उठे हुये जल सहित की.) १८३४४४२ | पद्म, तेतिस पील, पिछत्तर खर्व, तिरानवे ८०४५५१६ ०५०००००००००००००००००००० | अर्व, चब्वन करोड़, उन्तालीस लाख, पचास ०० ( १६ अङ्क और २२ शन्य, सर्व ३८ स्थान | हजार, तीन सौ छतीस ) है । यह संख्या प्रमाण ) मन है ॥ २६६ अर्थात् २ का ६६वां बल (घात) है ॥ सूचना ४-एक घनफट स्थान में ३० सेर | यह संख्या अढ़ाईद्वीप के सर्व पर्याप्त मनुष्यों ६ छटाँक नदी का जल और ३१ सेर ४ | की है ॥ छटाँक समुद्री खारी जल (लवण समुद्र का नोट ५-अङ्कगणना में कोई २ संख्या जल ) आता है; एक घनहस्त प्रमाण स्थान | बड़ी अद्भुत और 'आश्चर्योत्पादक' है, जैसे में २ मन २५ सेर ७॥ छटाँक, एक घन गज़ | (१) १४२८५७; यह ऐसी संख्या है कि (बीख या कि कु ) अर्थात् एक गज़ लम्बे, जिसे २,३,४,५ या ६ में अलग अलग गुणन एक गज़ चौड़े और एक गज गहरे स्थान में करने से जो 'गुणनफल' की संख्यायें २८५७ २१ मन ३॥ सेर और इसी रीति से एक घन | १४, ४२८५७१, ५७१४२८,७१४२८५,८५७१४२, महायोजन क्षेत्र में १०८०००००००००००००० प्राप्त होती हैं उनमें से प्रत्येक में गुण्य ०००००० ( १०८ पर २० शून्य ) मन जल अर्थात् मूलसंख्या" २८५७ के ही अङ्क समाता है । यहाँ ८० तोला ( ८० रुपये भर केवल स्थान बदल कर आजाते हैं, तिस पर का एक सेर और ४० सेर का एक मन ग्रहण भी विशेष आश्चर्य जनक बात यह है कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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