SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०० ) वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्कगणना भाग में वायु से, उपर के तिहाई भाग में जल से, और मध्य के तिहाई भाग में जल मिश्रित पवन से भरे रहते हैं ); इस का जल समभूमि से ११ सहस्र महायोजन ऊँचा उठा रहता है जो प्रत्येक मास में शुक्ल पक्ष की पढ़िवा तिथि से जब पाताल गत की पवन ऊपर को उठने लगती है क्रम से बढ़ कर पूर्णिमा को समभूमि से १६ सहल महायोजन ऊँचा हो जाता है और फिर कृष्णपक्ष की पड़िवा से जब पाताल गत्तों की पवन नीचे को दबने लगती है क्रम से घट कर अमावस्या को समभूमि से ११ सहस्र महायोजन ऊँचा ही पूर्ववत रह जाता है । इस उठे हुये जल की चौड़ाई समभूमि की सीध पर दो लाख महा योजन है जो दोनों ओर क्रम से घटती हुई ११ सहस्र योजन की ऊँचाई पर ६९३७५ महायोजन रह जाती और शुक्लपक्ष में जब जल ऊँचा उठता है तौ यह चौड़ाई क्रम और भी कम होती हुई पूर्णिमा को १६ सहस्र योजन की ऊँचाई पर केवल १० सहलू महायोजन रह जाती है। लवण समुद्र के २००० छोटे पातालगर्यो में से प्रत्येक गर्त्तका खातफल ३९९२३ ७५५४५७५ ( अर्थात् ३६६२३७५५४ और एक योजन के एक सरस भागों में से ५७५ (भाग ) घन महायोजन है और सर्व १००० गत्तों का खातफल ३९२२३७/५८५७५ घन महायोजन है। चार विदिशा के पाताल गत में से प्रत्येक गर्त्त का खातफल ३६६२ ३७५५४५७५ घन महायोजन और चारों का २५६६९५०२१८३०० घन महायोजन है । और चार दिशाओं के पातालगत्तों में से प्रत्येक गर्भ का खातफल ३६६२३७५५४५७ Jain Education International अङ्कगणना ५००० घन महायोजन और चारों का खातफल १५६६६५०२१८३००००० घन महायोजन है । इन सर्व १००८ पातालगत का मिला कर खातफल १५६८६४६४०६०७२८ ७५ ( १६ अङ्क प्रमाण ) घन महायोजन है ॥ पूर्णिमा के दिन जब कि लवणसमुद्र का जल १६००० महायोजन ऊँचा उठा होना है प्रत्येक भाग के जल का प्रमाण निम्न लिखित है: [१] १००८ पाताल कुंडों में के बचे हुए पवन मिश्रित जल का घनफल ५१५८४ ६५४३२८७५ ( १३ अङ्क प्रमाण ) घन महा योजन ॥ [ २ ] पाताल कुंडों को छोड़ कर समभूमि तक के लवणसमुद्र के जल का घनफल ६६६११७४६२६०००० ( १४ अङ्क प्रमाण ) घन महायोजन ॥ [३] समभूमि से ११००० महायोजन ऊँचे उठे हुए जल का घनफल १४० ५५३३५६८६६३१३५ (१६ अङ्क प्रमाम ) घन महायोजन ॥ [ ४ ] ११००० महायोजन ऊँचाई से ऊपर १६००० महायोजन ऊँचाई तक के अर्थात् शुद्धपक्ष में पाताल कुंडों से निकल कर ५००० महायोजन अधिक ऊँचा उठ जाने वाले जल का घन फल १८८२५४३४१६४६८७५ ( १५ अङ्क प्रमाण ) घन महा योजन ॥ [ ५ ] सर्व पाताल कुंडों के ओर बे उठे रहने वाले सर्व जल सहित लवणसमुद्र के सम्पूर्ण जल का घनफल या खातरूल १६६८५५८१५२३६२८७५ ( १६ अङ्क प्रमाण ) घन महायोजन | (१४) पाताल कुंडों के और समभूमि से ऊपर उठे हुए जल को छोड़ कर DRESOWOHARE TOURNEO For Personal & Private Use Only · www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy