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________________ - १०२४१६८३४८७महायोजन (.३३१२२०२७६० महायोजन है। (E ) अङ्कगणना वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्कगणना सूचना २-एक 'महायोजन' ही को दो लाख महायोजन, चौड़ाई है ) क्षेत्रफल 'प्रमाणयोजन' कहते हैं और यह साधारण जम्बूद्वीप के क्षेत्रफल से २४ गुणा, अर्थात् योजन से ५०० गुणा अर्थात् २००० कोश का १८६७३६६५६६०० वर्ग महायोजन ( १२ होता है। स्थान प्रमाण ) है और इसका धनफल (= ) सर्व वातवलयों का घनफल या ग्वातफल (पातालगत्तों को छोड़ कर ) जगतप्रतर (अर्थात् ४६ वर्गराजू) गुणित उसी के क्षेत्र फल से ५३५ गुणा अर्थात् 8 ..५८३६७ ६११७४६२९०००० (१४. स्थान प्रमाण) घन । १०९७६० या लगभग ९३३१२॥ प्रमाणयोजन ) है ॥ सूचना ३-लवणसमुद्र जम्बूद्वीप (त्रि. गा. १३६,१४० )॥ की चारों ओर वलयाकार है, समभूमि की | (९) एक कल्पकाल के 'सागरों' सौध में २ लाख महायोन और तलभाग | की संख्या २० कोड़ाकोड़ी अर्थात् २०००००० में केवल १० सहस्र महायोजन चौड़ा है। 000000000 (१६ अङ्क प्रमाण, दो पद्म) है ॥ | इसको गहराई. दोनों छोरों पर मक्षिका (१०) एक कल्पकाल के 'पल्योपमों' (माखी) के पक्ष (पंख ) की मुटाई की की संख्या सागरों की संख्यासे १०कोडाकोड़ी समान और क्रम से बढ़ती हुई मध्य भाग में गुणित, अर्थात् २,000000000,000000000 ( जहां का तल भाग १० सहस्र महायोजन 000000000000 (३१ अङ्क प्रमाण, एक अङ्क चौड़ा है) एक सहस्र महायोजन है, इसके और ३० शन्य ) है ॥ मध्य में चारों दिशाओं में एक एक पाताल . (११) एक व्यवहार पल्योपम के गर्दा प्रत्येक खड़े मृदंगाकार गोल मध्यभाग वर्षों की संख्या एक पल्य के उपर्युक रोमों में १ लाख महायोजन, तली में और शिरोकी संख्या से १०० गुणित अर्थात् ४१३४५२ | | भाग में १० सहस्र महायोजन व्यास का,और ६३०३०८२०३१७७७४९५१२१९२०00000000 रत्नप्रभा पृथ्वी के पङ्कभाग तक एक लाख 00000000000 (४७ अङ्क प्रमाण, २७ अङ्क महायोजन गहरा है, चारों विदिशाओं में और २० शन्य ) है ॥ एक एक पाताल गर्त प्रत्येक खड़े मृदंगाकार (१२) एक व्यवहार सागरोपम के गोल, मध्यभाग में १० सहस्त्र महायोजन, तलभाग और शिरोभाग में १ सहस्र महा'वर्षों' की संख्या उपयुक्त एक व्यवहार योजन व्यास का, और १० सहस्र महायोजन पल्योपम के वर्षों की संख्या से १० कोडाकोड़ी गहरा है और आठों दिशा विदिशाओं के गुणित अर्थात् ४१३४५२६३०३०८२०३१७७ बीच में सवा सवा सौ पाताल गर्त प्रत्येक ७४६५१२१६२०००००००००००००००००००० खड़े मृदंगाकार गोल, मध्यभाग में १ सहस्र ००००००००००००००० (६२ अङ्कप्रमाण, २७ महायोजन, तलभाग और शिरोभाग में अङ्क और ३५ शून्य ) है ॥ १०० महायोजन व्यास का, और १ सहस्र (१३) लवणसमुद्र की उपरिस्थ महायोजन गहरा है; ( यह सर्व १००० पाताधरातल का ( समभूमि की सीध में जहां लगर्त अपनी २ गहराई के नीचले तिहाई For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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