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________________ ( १८ ) अङ्कगणना वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्कगणना 'गोमदृसादि' करणानुयोग के ग्रन्थों की 000000000000000 (४५ अङ्क प्रमाण, १४ स्वाध्याय में पड़ती है:-- अङ्क और ३१ शून्य) और शिखा की सरसों (१) जिनवाणी के एक मध्यम पद के १७९९२००८४५४५१६३६३६३६३६३६३६३६३६ । अपुनरुक्त अक्षरों की संख्या १६३४८३०७८८- ३६३६३६३६३६३६३६३६ (४६अङ्क प्रमाण) हे॥ ( ग्यारह अङ्क प्रमाण ) है । (७) जम्बद्धःप का क्षेत्रफल ७९०५६६४ (२) चौदह प्रकीर्णक सहित द्वादशांग १५० वर्ग महायोजन ( २० अङ्कः प्रमाण ) है ॥ जिनवाणी या पूर्ण 'द्रव्यच तज्ञान' के सर्व सूचना १--किसी गोल पदार्थ की पमध्यमपद १२२८३५८००५ ( दश अङ्कप्रमाण) रिधि (गोलाई ) उसके व्यास से तृगुणी से और अपुनरुक्त अक्षर ८०१०८२७५ ( आठ- कुछ अधिक होती है । जब किसी गोल अङ्क प्रमाण ) हैं । इन में से दश अङ्कप्रमाण | पदार्थ का क्षेत्रफल जानना हो तो वहां व्यास जो पदों की संख्या है वह तो द्वादशांग की और परिधि के इस पारस्परिक सम्बन्ध संख्या है और आठ अङ्कप्रमाण जो अपुनरुक्त (अनुपात) को जानने की आवश्यक्ता पड़ती अक्षरों की संख्या है वह १४ प्रकीर्णक ( अङ्ग- है । यह पारस्परिक सम्बन्ध १:३, या वाह्य) की संख्या है जो एक पद से कम है ॥ १:३ . या १:570या १:१९. या १:३ १६ (३) सम्पूर्ण जिनवाणी ( अङ्ग और इन पांच प्रकार से गणितज्ञों ने नियत अङ्गवाह्य ) के अपुनरुक्त अक्षरों की संख्या किया है। इन में से पहिला अत्यन्त स्थूल है १८४४६७४४,७७३७०६५५१६१५ बीस अङ्क प्र और इससे अगला अगला अपने पूर्व पूर्व के से माण है। सूक्ष्म है । अन्तिम अर्थात् १:३१% अत्यन्त (७) पर्याप्त मनुप्यों की संख्या ७९, सूक्ष्म है और १ : १० मध्यम है। जहां जैसा २२,८१,६२५:१४२,६४,३३,७५,६३,५४,३६,५०, ३३६ ( २६ अङ्कप्रमाण ) है ॥ स्थूल या सूश्म क्षेत्रफल निकालने की आव(५) पल्य के रोमों की संख्या ४१३४५; श्यकता होती है वहां गणितज्ञ उसी स्थूल २६३०३०८२०३,१७७७४६५१२१.१२0000000 या सूदभ सम्बन्ध से यथाआवश्यक कार्य ले 00000000000 (४५ अङ्क प्रमाण, २७ अङ्क और १८ शन्य ) है ।। यहां जम्बद्वीप का क्षेत्र फल निका(६) जघन्यपरीतासङ्ख्यात का प्रमाण | लने में मध्यम सम्बन्ध १:१० अर्थात् १:१० जानने के लिये बनाये गये १000 महायोजन का वर्गमूल ( ३.१६२२७७६६०१६८३७९.") गहरे और जम्बूद्वीप समान गोल १ लक्ष से काम लिया गया है । और पल्य महायोजन प्यास वाले प्रथम 'अनवस्था के रोमों की संख्या निकालने के लिये जो कुण्ड' की शिखाऊ भरी हुई सरसों के दानों पल्य का खातफल ( घनफल ) लिया की संख्या १६६७२१,२६३८४५१३१६,३६३६ गया ह वा ११ इस सम्बन्ध आर ३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६३६ (४६ / वस्था कुंड' की सरसों की संख्या निकालने अङ्कप्रमाण ) है । इस में से कुण्ड की सरसों में अत्यन्त स्थूल सम्बन्ध १:३ से ही काम ११७६१२०६२६६६६८0000000000000000 | निकाला गया है। A WARA Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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