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________________ (६७) अङ्कगणना वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्कगणना नन्त' से १ कम तक की सर्व संख्याएँ॥ (१) धर्मद्रव्य के अगरुलघ गण के (२१) उत्कृष्ट अनन्तानन्त--'जघन्य अनन्तानन्त अविभागी प्रतिच्छेद, . अनन्तानन्त' कीसंख्या का उपयुक्त विधि से | (२) अधर्मद्रव्य के अगुरुलघु गुण के | 'शलाकात्रयनिष्ठापन'करें । ऐसा करने से जो अनन्तानन्त अविभागी प्रतिच्छेद ॥ एक महाराशि प्रात होगो वह 'मध्यअनन्ता इस योगफल का फिर 'शलाकात्रयनन्त' के अनन्तानन्त भेदों में से एक भेद है ॥ निष्ठापन' पूर्वोक्त विधि से करें । प्राप्त हुई यहां तक के मध्यअनन्तानन्त' को | यह महाराशि भी 'मध्यअनन्तानन्त' 'सक्षाअनन्त' कहते हैं । इसपे आगे निम्न के अनन्तानन्त भेदों में का ही एक भेद है। लिखित 'मध्यअन्तानन्त' के सर्व भेदो इसे 'कैवल्यज्ञान' शक्ति के अविभागप्रति और 'उत्कृटअनन्तानन्त' को 'अक्षयअनन्त' लेदों के समर पराशि में से घटावें कहते हैं। और इस प्रकार अनन्त के उप- और शेष में वही महाराशि ( जिसे घटाया युक्त ६ भेदों की जगह दूसरी अपेक्षा से गया है ) जोडदें । जो कुछ योगफल प्राप्त हो केवल यह दो ही सामान्य भेद हैं। (देखो वही 'उत्कृष्टअनन्तानन्त' का प्रमाण है, अर्थात् शब्द 'अक्षयअनन्त' )॥ 'उत्कृष्टअनन्तानन्त' का परिमाण 'कैवल्यशान' अब उपरोक्त मध्यअनन्तानन्त (उत्कृष्ट शक्ति के भविभागप्रतिच्छेदों के परिमाण की सक्ष-अनन्त ) में निम्नोक्त छह 'अक्षय- बराबर ही है। जिसका महत्व हृदयाङ्कित अनन्त' राशियाँ जोड़ें: करने के लिये उपयुक्त विधान से काम (१) जीवराशि के अनन्तवें भाग लिया गया है ॥ सिद्धराशि, (त्रि. गा. ४८-५१) । (२) सिद्धराशि से अनन्तगुणी नि- नोटर-उपर्युक्त अङ्कगणना सम्बन्धी गोदराशि, संख्यात के ३ भेद, असंख्यात के ६ भेद और (३) सिद्धराशि से अनन्तगुणी सर्व अनन्त के ९ भेद, एवम् २१ भेदों में से संख्यात वनस्पतिकायिक राशि, की गणना तो 'श्र तज्ञान' का प्रत्यक्ष विषय, (४) सर्व जीवराशि से अनन्तगुणी असंख्यात की गणना 'अवधिज्ञान' का प्रपुद्गलराशि, त्यक्ष विषय और अनन्त की गणना केवल (५) पुदगलराशिसे भी अनन्तानन्त 'कैवल्यज्ञान' ही का युगपत प्रत्यक्ष विषय गणी व्यवहारकाल के त्रिकालवर्ती समय, (६) सर्व अलोकाकाश के अनन्ता (त्रि. ग.५२)। नन्त प्रदेश। नोट३-अलौकिक अङ्कगणना (संख्या • इन उपर्युक्त सातों राशियोंका योग- लोकोत्तरमान ) सम्बन्धी १४ धारा हैं ॥ फल भी 'मध्यअनन्तानन्त' का ही एक (देखो शब्द 'अङ्कविद्या' का नोट ५ ) । भेद है। इस योगफल का फिर 'शलाका- नोट ४--अङ्कगणना सम्बन्धी विशेष प्रयनिष्ठापन' पूर्वोक्त रीति से करके उसमें स्मरणीय कुछ गणनाएं निम्न लिखित हैं निम्न लिखित दो महाराशि और मिलायें:- जिन के जान लेने की अधिक आवश्यक्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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