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________________ (१६ ) अङ्कगणना वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्क गणना (२) लोकप्रमाण "अधर्म द्रव्य" के | फल का फिर उपयुक्त विधि से"शलाकोत्रयअसंख्यात प्रदेश, निष्ठापन" करें। उत्तर में जो अन्तिम 'महान(३) लोकप्रमाण एक "जीव द्रव्य" | राशि' प्राप्त होगी वही 'जघन्यपरीतानन्त' के असंख्यात प्रदेश, | की संख्या है ॥ . (४) लोकप्रमाण "लोकाकाश"के असं (त्रि० गा० ३८-४५) ॥ ख्यात प्रदेश, (१४) मध्यपरीतानंत-अघन्य परीतानन्त (५) लोक से असंख्यातगुणा "अप्रति- से १ अधिक से लेकर 'उत्कृष्टपरीतानन्त' से ष्ठित प्रत्येकवनस्पतिकायिक जीवों' का १ कम तक की जितनी संख्यायें हैं वे सर्व ॥ प्रमाण, (१५) उत्कृष्टपरीतानन्त-'जघन्ययुक्ता(६) असंख्यात लोक से असंख्यात ति नन्त' की संख्या से १ कम ॥ लोक गुणा (सामान्यपने असंख्यात लोक (१६) जघन्ययुक्तानन्त-(जघन्यपरीप्रमाण प्रतिष्ठत प्रत्येकवनस्पतिकायिक जीवों का प्रमाण, तानन्त ) जघन्यपरीतानन्त,अर्थात् 'जघन्यइन सातों राशियों का जो कुछ जोड़ परीतानन्त' की संख्या का 'जघन्यपरीतानन्त' फल प्राप्त हो उस महाराशि का "शलाका की संख्या प्रमाण बल (जघन्यपरीतामन्त प्रय निष्ठापन" उसी रीति से करें जिस प्रकार की संख्या को जघन्यपरीतानन्त जगह अलग कि"जधन्यअसंख्यातासंख्यात" की संख्या का अलग रख कर सर्व को परस्पर गुणन करें )। पहिले किया जा चुका है । तत्पश्चात इस (त्रि० गा०४६॥ महाराशि में निम्न लिखित चार रशियां और नोट-सर्व अभव्य जीवों की संख्या मिलावें: | 'जघन्ययुक्तानन्त' प्रमाण है ॥ (१) २० कोडाकोड़ी सागरोपम प्रमाण | (त्रि. गा.४६)॥ एक "कल्पकाल" के समयों की संख्या, __ (१७) मध्ययक्तानंत—'जघन्ययुक्तानन्त' (२) असंख्यात लोकप्रमाण "स्थिति- । | से १ अधिक से लेकर 'उत्कृष्टयुक्तानन्त' से १ वन्धाध्यवसाय स्थान" ( कर्म स्थितिवन्ध को | कम तक की जितनी संख्यायें हैं वे सर्व ।।। कारणभूत आत्म-परिणाम ), (३) 'स्थिति बन्धाध्यवसाय' से असं (१८)उत्कृष्टयक्तानंत-जघन्य अनन्ताख्यातगुणे ( सामान्यपने असंख्यात लोक | नन्त' की संख्या से १ कम ॥ प्रमाण ) "अनुभागबन्धाध्यवसाय स्थान" (१६) जघन्य अनंतानंत-( जघन्ययु(अनुभागबन्ध को कारण आत्म-परिणाम ), तानन्त),अर्थात् 'जघन्ययुक्तानन्त' का वर्ग (४) अनुभागबन्धाध्यवसाय स्थान से या द्वितीय बल (जघन्ययुक्तानन्त को जघन्य असंख्यातगुणे (सामान्यपने असंख्यातलोक युक्तानन्त से गुणन करें)॥ प्रमाण ) मन-वचन-काय योगों के उत्कृष्ट अ (त्रि. गा.४७)॥ विभाग-प्रतिच्छेद (गुणों के अंश)॥ (२०)मध्यअनन्तानन्त-'जघन्यअनं. इन पाँचों महान-राशियों के जोड़ तानन्त' से १ अधिक से लेकर 'उत्कृष्टअनन्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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