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________________ - ( १ ) अङ्कगणना वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्कगणना और गहराई एक सहसू महायोजन द्वीप एक दूसरे की चारों ओर वलहै। इनमें से पहिले अनवस्थाकुंड को याकार स्थित मिन्ती में असंख्यात हैं। गोल सरसों के दानों से शिखाऊ स्मरण रहे कि किसी द्वीप या ( पृथ्वी पर की अन्नराशि के समान समुद्र की परिधि ( गोलाई ) के एक शिखा बांध कर )भरें। गणितशास्त्र तट से दूसरे ठीक साम्हने की दिशा के नियमानुकूल हिसाब लगाने से के तट तक की चौड़ाई को "सूची" इस अनवस्थाकुंड में १६६७११२९३- कहते हैं । अतः. "जम्बूद्वीप" की ८४५१३१६३६३६३६३६३६३६३६३६- सूची तो उसका व्यास ही है जो एक ३६३६३६३६३६३६३६ (४६ अङ्कप्र- लक्ष महायोजन है और "लवणमाण ) सरसों के दाने समावेंगे। समुद्र" की सूची ५ लक्ष महा( गणितशास्त्रानुकूल इस संख्या को . योजन है। दूसरे द्वीप "धातकीखंड" निकालने की विधि जानने के लिये की सूची १३ लक्ष महायोजन की, देखो शब्द "अनवस्थाकुंड'' ). दूसरे समुद्र “कालोद्ध” की सूची अब इस सरसोको क्या किया . २९ लक्ष महा योजनकी, तीसरे द्वीप जाय यह बताने से पहले यह बात "पुष्कर'' की सूची ६१ लक्ष महाध्यान में रख लीजिये कि तीनलोक योजनकी और तीसरे समुद्र “पुष्करके मध्य भाग को नाय "मध्यलोक" वर" की सूची १२५ लक्ष महायोजन है, और इस मध्यलोक के बीचों की है । इसी प्रकार अगले २ प्रत्येक बीच एक लक्ष महायोजन. के व्यास द्वीप या समुद्र की सूची अपने ३ पूर्व का स्थालीवत गोलाकार एक"जम्बू- . के समुद्र याद्वीप की सूची से ३ लक्ष द्वीप" है । इस द्वीप की चारों ओर अधिक दूनी होती गई है। अतः अब बलयाकार ( कड़े के आकार ) दो यह भी भले प्रकार ध्यान में रखिये लक्ष महायोजन चौड़ा "लवणसमुद्र' कि जब गणित करनेसे 'पहिले द्वीप' है । इस लवणसमुद्र की चारों ओर की सूची केवल एक लक्ष होने पर ४ कक्ष महायोजन चौड़ा बलयाकार तीसरे ही द्वीप को सूची ६१ लक्ष दूसरा “धातकीखंडद्वीप” है। इस और तीसरे समुद्रकी सूची १२५लक्ष द्वीप की चारों ओर वलयाकार ८ महायोजन की हो जाती है तो सैकलक्ष महायोजन चौड़ा दूसरा “का डों, सहस्रों,लो, सङ्खों या असंखों लोदकसमुद्र" और इस समुद्र की द्वीप समुद्र आगे बढ़कर उनकी सूची चारों ओर वलयाकार १६ लक्ष महा प्रत्येक बार दूनी दूनी से भी अधिक योजन चौड़ा तीसरा "पुष्करद्वीप" बढ़ती जाने से कितनी अधिक बड़ी है। इसी प्रकार आगे आगे को द्वीप होजायगी॥ से दूना चौड़ा अगला समुद्र और अब उपयुक्त दूसरे कुंड - फिर समुद्र से दूना चौड़ा अगला "शलाका"नामक में अन्य एक दाना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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