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________________ ( ६२ ) अङ्कमाणना वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्कगणना सरसों का डाल कर 'अनवस्थाकुंड' समान व्यास वाला १००० महामें शिखाऊ भरी हुई उपरोक्त ४६ योजन गहरा अब “तीसरा · अनव. अङ्कप्रमाण सरसों में से एक दाना स्थाकंड" बना कर इसे भी पूर्ववत् सम्बद्धोप में, एक दाना 'लवण सरसों से शिखाऊ भरिये और उपसमुद्र' में, एक दाना दूसरे"धातकी रोक्त "शलाकाकुंड' में फिर एक खण्डद्वीप" में, एक दाना दूसरे “का अन्य तीसरा दाना सरसों का डाल लोदक” समुद्र में डालिये और इसी कर और तीसरे "अनवस्थाकुंड" प्रकार अगले २ द्वीपों और समुद्रों की सरसों भी निकाल कर अगले में से प्रत्येक में वहां तक एक २ दाना अगले प्रत्येक द्वीप और समुद्र में डालते जाइये जहां तक कि वह पूर्ववत् एक एक सरसों डालते "अनवस्थाकुंड'' रीता हो जाय । जाइये। सरसों का अन्तिम दाना किसो जिस समुद्र या द्वीप पर यह समुद्र में (न कि जीप में ) गिराया सरसों भी समाप्त हो जाय उस सजायगा, क्योंकि सरसों की संख्या मुद्र या द्वीप की सूची बराबर व्यास का अङ्क 'सम' है 'विषम' नहीं ॥ वाला १००० महायोजन गहरा जिस अन्त के समुद्र में अन्तिम “चौथा अनवस्थाकुंड” फिर सदाना गिराया जाय, उस समुद्र की रसों से शिखाऊ भर कर एक अन्य सूची बरावर व्यास वाला १००० 'चोथादाना' सरसों का उपरोक्त महायोजन गहरा अब 'दूसरा अ- "शलाकाकुंड' में डालिये और पूर्व नवस्थाकुंड' बनाइये और उसे भी वत् इस चौथे 'अनवस्थाकुंड' को पूर्वोक्त प्रकार शिखाऊ सरसों से रीता कर दीजिये ॥ भरिये। अब एक और दूसरा दाना पूर्वोक्त प्रकार एक से एक असरसों का उपरोक्त शलाकाकंड गला अगला संखों गुना अधिक २ में डाल कर इस दूसरे "अनवस्था- बड़ा नवीन नवीन "अनवस्थाकुंड" कुंड" में शिखाऊ भरी हुई सरसों बना बना कर और सरसों से शिको भी निकाल कर जिस समुद्र में खाऊ भर भर कर रीते करते जाइये पहिले "अनवस्थाकुंड' की सरसों और प्रतिवार "शलाकाकुंड" में समाप्त हुई थी उससे अगले द्वीप से एक एक सरसों छोड़ते जाइये जब प्रारम्भ करके एक एक सरसों प्रत्येक तक कि "शलाकाकुंड" भी एक एक द्वीप और समुद्र में पूर्ववत आगे सरसों पड़ कर शिखाऊ न भरे । आगे को डालते जाइये॥ इस रीति से जब "शलाकाकुंड" जिस समुद्र या द्वीप पर शिखाऊ पूर्ण भर जाय तब एक सरपहुँच कर यह सरसों भी समाप्त हो सो तीसरेकंड 'प्रतिशलाका'नामक जाय उस समुद्र या द्वीप की सूची । में डालिये ॥ - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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