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अघातिया कर्म
विशेष - नरकायु और देवायु की उत्कृष्ट स्थिति ३३ सागरोपम और जघन्य १० सहस्र वर्ष है । मनुष्य और तिर्यञ्च की उत्कृष्ट स्थिति ३ पल्योपम और जघन्य अन्तरमुत्तं काल है । उत्कृष्ट स्थिति केवल संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीव ही की बँधती है । नरका की उत्कृष्ट स्थिति उत्कृष्ट संलेश परिणामों से केवल मिथ्यादृष्टी मनु• प्य व तिर्यञ्च ही कै बँधती है । देव आयु की उत्कृष्ट स्थिति जघन्य संक्लेश परिणामों से केवल सम्यग्दृष्टो मनुष्य ही सातवें गुणस्थान चढ़ने को सन्मुख छरे गुणस्थान वाला ही वांधता है । शेष तिर्यञ्च और मनुष्य आयु को उत्कृष्ट स्थिति जघन्य संक्लेश परिणाम वाला मिथ्यादृष्टी जीव ही बांधता है ॥ 7 ( २ ) नामकर्म – नरक, तिर्यञ्च, मनुप्य और देव, इन चारों पर्यायों सम्बंधी सर्व प्रकार के शरीरों की अनेक प्रकार की रचना के लिये जो कर्म निमित्त कारण है उसे "नामकर्म" कहते हैं । इस कर्म का स्वभाव चितेरे (चित्रकार ) की समान है जो अनेक प्रकार के चित्राम् बनाता है । इस कर्म के २ या ४२ या ९३ अथवा १०३ भेद हैं :
२ भेद - ( १ ) पिण्ड प्रकृति, अर्थात् कई २ भेद वाली प्रकृति ( २ ) अपिण्ड प्रकृति, अर्थात् अभेद वाली प्रकृति ॥ ४२ भेद - १४ पिण्ड प्रकृतियां और २८ अपिण्ड प्रकृतियां ॥ ६३ भेद
-- ६५ भेद चौदह पिण्डप्रकृतियों के और २८ अपिण्ड प्रकृतियां ॥
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( ८० )
वृहत् जेन शब्दार्णव
-:
अघातिया कर्म
१०३ भेद - - ७५ भेद चौदह पिण्ड
प्रकृतियों के और २८ अपिण्ड प्रकृतियां ॥
चौदह पिंड प्रकृतियां अपने ६५ भेदों सहित निम्न प्रकार हैं:--
要 ( १ ) गति ४ -- नरकगति, तिर्यज गति, मनुष्यगति, देवगति ॥
( २ ) जाति -- ए केन्द्रियजाति, द्वीन्द्रियजाति त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रिय जाति, पञ्चेन्द्रियजाति ॥
( ३ ) शरीर ५-- औदारिक शरीर, वैक्रियिक शरीर, आहारक शरीर, तैजस शरीर, कार्माणशरीर ॥
* ( ४ ) अंगोपांग ३--औदारिकआंगोपांग, वैक्रियिक आंगोपांग, आहारकआंगोपांग ॥
नोट -- दो जंघा, दो भजा, नितम्ब, पीठ, हृदय, शिर, यह आठ अङ्ग कहलाते हैं और इन अंगों के अङ्ग या अवयव कान नाक, आँख, कंठ, नाभि, अँगुली, आदि उपांग कहलाते हैं ॥
( ५ ) बन्धन ५ - औदारिकशरीर बन्धन वैक्रियिकशरीर बंधन, आहारकशरीर बन्धन, तैजसशरीर बन्धन, कार्माणशरीर
बन्धन ॥
(६) संघात५ -- औदारिकशरीर संघात, वैकि किशरीर संघात, आहारकशरीर संघात, तैजसशरीर संघात, कार्माणशरीर संघात |
(७) संस्थान ६ -- समचतुरस्र संस्थान, न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान, स्वातिकूसंस्थान, कुब्जक संस्थान, वामनसंस्थान, हुण्डक संस्थान |
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