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________________ ( ७८ ) अघनपान अघभी जिसकी संख्या अङ्कों द्वारा प्रकट किये जाने योग्य नहीं है केवल सर्वज्ञ शानगम्य ही है । इस धारा के मध्य के अङ्क ३, ४, ५, ६, ७, ६, १०, ११ आदि एक कम उकृष्ट अनन्तानन्त पर्यंत अनन्तानन्त हैं। उत्कृष्ट अनन्तानन्त में से "घनधारा" के अङ्कों की 'स्थान - संख्या' घटा देने से जो संख्या प्राप्त होगी वह इस 'अघनधारा' के अों की "स्थान संख्या" है । ( देखो शब्द 'अङ्कगणना' तथा 'अङ्कविद्या' और उसका नोट ५) ॥ अवनपान-देखो शब्द " अघन" ॥ आदि उत्कृष्ट अनन्तानन्त तक के सर्व अङ्क 'सर्वधारा' के अङ्क हैं । १, २, ३, आदि उत्कृष्ट अनन्तानन्त के 'आसन्न - घनमूल' तकके सर्व अङ्क “घनमातृकधारा" के अङ्क हैं। इससे आगे के उत्कृष्ट अनन्तानन्त तक के सर्व अङ्क "अघनमातृकधारा" के अङ्क हैं । अतः इस धारा का प्रथम अङ्क ( प्रथम स्थान ) उत्कृष्ट अनन्तानन्त के "आसन्न घनमूल से १ अधिक है और अन्तिम अङ्क ( अन्तिम स्थान ) " उत्कृष्ट अनन्तानन्त" है । सर्व धारा की स्थानसंख्या ( उत्कृष्ट अनन्तानन्त ) में से 'घनमातृकधारा" की स्थान संख्या (घनमातृक धारा का अन्तिम अङ्क ) घटा देने से जो संख्या प्राप्त हो वह इस अघनमातृकधारा के अङ्कों की अङ्कसंख्या या " स्थान संख्या" है । (देखो शब्द 'अङ्कविद्या का नोट ५ ) ॥ । अघनमातृकधारा - इसको “अघनमूल धारा' भी कहते हैं । अलोकिक अङ्कगणित या लोकोत्तर संख्यामान सम्बन्धी १४ धाराओं में से वह धारा जिसका कोई अङ्क किसी अन्य अङ्क का 'घनमूल' न हो ॥ नोट २ - " आसन्न " शब्द का अर्थ है 'निकट' | उत्कृष्ट अनन्तानन्त की संख्या सर्वधारा के अङ्कों में से घनमातृक (घ- घमधारा का अङ्क नहीं है अर्थात् वह स्वयम् नमूल ) धारा के सर्व अङ्क छोड़ने से जो किसी भी अङ्क का घन नहीं हैं अतः उससे शेष अङ्क रहें उन सर्व के समूह को पूर्व उसके निकट से निकट जो अङ्क किसी “अघनमातृकधारा'' कहते हैं । अर्थात् अन्य अङ्क का घन हो वही अङ्क उस घन की जिस अङ्क का घन उत्कृष्ट अनन्तानन्त अपेक्षा अनन्तानन्त की संख्या का "आसन्नका आसन्न अङ्क है उससे आगे के उत्कृष्ट | अङ्क" कहिलायगा और वह अन्य अङ्क उ अनन्तानन्त तक के सर्व ही अङ्क 'अघनमातृकधारा' के अङ्क हैं । का 'आसन्न घनमूल ' कहिलायगा । जैसे १२८ की संख्या स्वयम् किसी अङ्क का घन नहीं है किन्तु उससे पूर्व निकट से निकट १२५ का अङ्क ५ का घन है। अतः यहां १२५ को १२८ का आसन्न अङ्क और ५ को १२८ का "आसन्न घनमूल" कहेंगे ॥ अभी - पापभीरु, पापों से भयभीत ॥ Jain Education International वृहत् जैन शब्दार्णव नोट १ – किसी अङ्क को तीन जगह रख कर परस्पर गुणन करने से जो अङ्क प्राप्त हो वह अङ्क पूर्व अङ्क का 'घन' कहलाता है और वह पूर्व अङ्क उत्तर अङ्क का " घनमूल” या "घनमातृक" कहलाता है । जैसे २ का घन ८ है और ८ का घनमूल २ है, ३ का घन २७ है और २७ का घनमूल ३ है ॥ १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, १०, ११, गृहस्थधर्म को सुयोग्यरीति से पालन करने योग्य पुरुष के १४. मुख्य गुणों में से उस गुण को धारण करने वाला मनुष्य | For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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