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________________ अघन ( ७७ ) वृहत् जैन शब्दार्णव पीने योग्य । पेय पदार्थों के घन, अघन, लेपी, अलंपी, ससिक्थ, असिवथ इन ६ भेदों में से दूसरे प्रकार का पदार्थ जो दही आदि की समान गाढ़ा न हो ॥ नोट १ - दही आदि पीने योग्य गाढ़े पदाथों को 'घ' और नारंगी, अनार आदि फलों के रस को व दुग्ध, जल आदि पतले पेय पदार्थों को ''अवन'; हथेली पर चिपकने वाले पेय पदार्थों को 'लेपी' और न चिपकने वालों को 'अलेपी'; भात के कण सहित मांड को तथा सागूदाना आदि अन्य पदार्थों के कण सहित पके जल को अथवा fare पेय पदार्थो को 'सक्थि' और बिना कण के माँड ( कांजी ) को तथा औषधि आदि के पके जल को अथवा जो पेय पदार्थ स्निग्ध न हों उनको 'असिक्थ' कहते हैं ॥ नोट :- सर्वभक्ष्य पदार्थ ४ भेदों में विभाजित हैं- (१) खाद्य (२) स्वाद्य (३) लेह्य ( ४ ) पेय, इनमें से 'पेय' के उपर्युक्त ६ भेद हैं ॥ [2] गणित की परिभाषा में 'अघन' वह अङ्क है ओ किसी पूर्णाङ्क का घन न हो अर्थात् जो किसी अङ्क को ३ जगह रख कर परस्पर गुणन करने से प्राप्त नहीं हुआ हो ॥ नोट ३- किसी अङ्क को तीन जगह रख कर उन्हें परस्पर गुणन करने से जो अङ्क प्राप्त हो उसे उस प्रथम अङ्क का 'घन' कहते हैं, जैसे १ का घन (१ x १ x १ = १) एक है, अर्थात् एकके अङ्क को तीन जगह रखकर जब परस्पर गुणन किया तो एक ही प्राप्त हुआ; अतः १ का घन १ ही है । इसी प्रकार २ का घन (२x२x२= ८) आठ है अर्थात् दो के अङ्क को तीन जगह रख कर परस्पर गुणन करनेसे Jain Education International ܢ For Personal & Private Use Only अघनधारा ( दो दुगुण ४ और ४ दुगुण ८) आठका अङ्क प्राप्त हुआ; अतः २ का घन = है। ऐसे ही ३ का घन (३ x ३ x ३ = २७ अर्थात् तीनतिये ६ और तिये २७) सत्ताईसका अङ्क है । ४का घन ४ x ४ x ४ = ६४ है; ५ का घन १२५, ६ का घन २१६, ७ का घन ३४३, ८ का घन ५१२, • 1 ६ का घन ७३६, १० का घन १०००, ११ का घन १३३१ इत्यादि । यहां उपर्युक्त अङ्क १, ८, २७, ६४, १२५, २१६, ३४३, ५१२, ७२९, १०००, १३३१ आदि घनाङ्क हैं जो क्रम से १, २, ३ आदि अङ्कों के 'घन' हैं । अतः जो अङ्क किसी अन्य अङ्कका घन न हो उसे अघन कहते हैं अर्थात् उपर्युक्त घनाङ्कों को छोड़ कर शेष सर्व अङ्क २, ३, ४, ५, ६, ७, ९, १०, ११, १२, १३, १४, १५, १६, १७, १८, १६, २०, २१, २२, २३, २४, २५, २६, २८, २६, ३० आदिमें से 'प्रत्येक अङ्क अघनाङ्क' है ॥ अघनधारा -लोकोत्तर गणित सम्बन्धी १४ धाराओं में से उस धारा का नाम जिसका हर अङ्ग 'अघन' हो । “सर्वधारा" में से 'घनधारा' के सर्व अङ्कों को छोड़ कर जो शेष अङ्क रहें वे सर्व' 'अघनधारा' के अ हैं अर्थात् १ से प्रारम्भ करके उत्कृष्ट अनन्तानन्त तककी पूर्ण संख्या ( सर्वधारा ) के अङ्कों में से घनधारा के सर्व अङ्क १, ८, २७, ६४, १२५, २१६, ३४३, ५१२, ७२६, १०००, १३३१ आदि छोड़ देने से जो २, ३, ४, ५, ६, ७, ९, १०, १२, १२, १३, १४, १५, १६, १७, १८, १९, २०, २१, २२, २३, २४, २५, २६, २८, २९, ३० आदि उत्कृष्ट अनन्तानन्त तक शेष अङ्क हैं उन सर्व के समूह को "अघनधारा" कहते हैं ॥ इस धारा का प्रथम अङ्क २ है और अन्तिम अङ्क "उत्कृष्ट अनन्तानन्त" हैं www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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