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अग्लानिशुद्धि वृहत् जैन शब्दार्णव
তাঘল अग्लानिराद्धि-अष्ट लौकिक शुद्धियों में स्रव होताहै उसे साम्प्रायिक आस्रव कहींहैं ।
से एक प्रकार की शद्धि जो किसी अप-' यही आत्रत्र संसार परिभ्रमण का मूल कारण वित्र वस्तु के सम्बंध में ग्लानि न करने ही है। इसके मूल भेद (१) ५इन्द्रिय [स्पर्शन, रसन, से या किसी साधारण उपाय द्वारा मन |
घ्राण, चक्ष, श्रोत्र] (२) ४ कपाय [कोव, मान, ! से ग्लानि दूर हो जाने पर लोक-मान्य हो;
माया, लोभ ] (३) ५ अनल अर्थात् हिंसा, जैसे शर्करा (जाँड, चीनी ) जिसके बनने अमृत [असत्य]. स्सेय [चोग]. कु.शील या। में असंच अगणित छोटे-बड़े त्रस ( जगम) • अब्रह्म, परिग्रह और (४) २५ किया, यह सर्व जीवों का घात हो कर उनका कलेवर
३४ हैं । २५ क्रिया निम्न लिखित है:उसी में सम्मिलित हो जाने पर भी तथा (१) सम्यक्त्ववईनी क्रिया (२) मिथ्यात्व चमारादि अस्पर्य शूद्रों द्वारा पददलित पुष्टकारिणी क्रिया (३) प्रयोग किया या होने पर भी उसे अशुद्ध नहीं माना जाता; असयमवर्द्धनी क्रिया (४) समादान क्रिया म्लेच्छ स्पर्शित दुग्ध, या मत्स्यजीवी । (५) ईर्यापथ क्रिया (६) प्रादोषिक क्रिया मांसाहारी धीवर ( कहार, महरा) का (७) कायिक क्रिया (८) अधिकरण किया छुआ जल; अस्पय-अकारू से छू जाने (अघकारी क्रिया).(९) पारितापिक क्रिया पर सुवर्णस्पर्शित जल से छिड़कना, रोगी (१०) प्राणातिपातिक क्रिया (११) दर्शन रजस्वला स्त्री को या जन्म मरण सम्बंधी क्रिया (१२) स्पर्शन किया (१३) प्रात्ययिक लगे सतक वाले रोगी मनुष्य को जिसे किया (२४) समन्तानुपात पिया (१५) वैद्यक-शास्त्रानुकल स्नान वर्जित हो कोई अनाभोग किया (१६) स्वहस्त किया (१७) निरोगी मनुष्य यथानियम कई बार छू छु निसर्ग किया (१८) विदारण किया (१६) कर स्नान करे तो वह रोगी शुद्ध हुआमाशायापादिक किया (२० ) अनाकांक्षा माना जाता है ।शवादि ॥
किया (२१) प्रारम्भ किया (२२) पारिअघ-पाप, व्यसन, दुश्व, अधर्म ॥
ग्राहिक किया (२३) माया किया (२४) ज्योतिषचक्र सम्बंधी ८८
मिथ्यादर्शन किया (२५) अप्रत्याख्यान ७६ चे ग्रह का नाम ॥
किया ॥ नोट-८८ पहों के नाम जानने के लिये नोट ३-प्रत्येक किया का स्वरूप यथाआगे दे वो शब्द “अठासीग्रह" ॥
स्थान देखें ॥ (त्रि. गा० ३६३-३७०) अघटितब्रह्म (परमब्रह्म, ब्राह्मदेव)--पुष्क | अघकारीक्रिया ( अघकारिणी क्रिया, रार्द्ध द्वीपकी पूर्वदिशा में मन्दरमेश के अधिकरण किया)-पापोत्पादक किया, हिं- दक्षिण-भरतक्षेत्रान्तर्गत आर्यवण्ड की सा के उपकरण शस्त्रादि ग्रहण करने का अनागत चौबीसी में होने वाले चौथे कार्य करना, साम्परायिक आस्रव सम्बन्धी तीर्थकर का नाम । (आगे देखो शब्द ३५ कियाओं में से आठवीं किया का नाम ॥ 'अढाईद्वीपपाठ' के नोट ४ का कोष्ठ ३)॥ नोट १-कषाय सहित जीवों के जो कर्मा-अघन--[१] अघनपान, पतला, पेय अर्थात्
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