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________________ अग्निवेग वृहत् जैन शब्दार्णव अग्निशिख तीर्थङ्कर के एक पूर्व भव का मनुष्य । स्वर्ग में देव (६) वजूनाभ चकूवर्ती (७) यह अग्निवेग जम्बूद्वीपस्थ पूर्व विदेह के मध्य वेयकत्रिक के 'सुभद्र' नामक ! पुष्कलावती देश में 'त्रिलोकोत्तम' नामक मध्यम विमान में "अहमेन्द्र" (८) इक्ष्वाकुनगर के विद्याधर राजा 'विद्यद्गति' की | वंशी अयोध्यापति 'आनन्द' नामक महा रानी 'विद्युन्माला' के गर्भ से उत्पन्न मांडिलिक नरेश (E) १३ वें स्वर्गमें 'आनतेन्द्र', हुआ था । यह बड़ा सौम्यस्वभावी | फिर इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्री वाराणसी और धर्मज्ञ था। यह यवावस्था के प्रारम्भ | नरेश 'विश्वसेन' की महारानी 'ब्राह्मदत्ताही से सांसारिक विषय भोगों से विरक्त | वामादेवी' के गर्भ से जन्म लेकर २३ ।। और बाल ब्रह्मचारी रहा। श्री 'समाधिगुप्त| तीर्थकर हो मोक्षपद पाया ॥ मुनि से दिगम्बरीदीक्षा लेकर उग्रोग्र तप (पार्श्वनाथ चरित्र) करने लगा। अन्त में अब एक दिन हिमालय नोट२--श्री त्रिलोकसार ग्रन्थी गाथा पर्वत की एक गुहा में यह मुनि ध्यानारूढ़ ८११ के अनुकूल "श्री पार्श्वनाथ" ने श्री .थे तो एक अजगर जाति के सर्प ने जो इनके वीरनिर्वाण से २४६ वर्ष ३ मास १५ दिन पूर्व पूर्व जन्म का भ्राता और शत्रु कमठ का | निर्वाणपद प्राप्त किया । जीव था इन्हें काट लिया, जिस से शुभ- अग्निवेश्म ( प्रा० अग्गिवेस ) चतुर्दशी भ्यान पूर्वक शरीर छोड़ कर यह 'अच्युत', तिथि का नाम । दिन के २२ दें मुहूर्त का नामक १६ वें स्वर्ग के पुष्कर नामक विमान नाम। कृत्तिका नक्षत्र का गोत्र (अ० म०) के अधिपति हुए । वहां की आयु पूर्ण कर | । (देखो शब्द 'अग्निवाहन')॥ बीच में ४ जन्म और धारण करने के | अग्निवेश्यायन (प्रा० अग्गिवेसायण)पश्चात् अन्त में काशी देश की वाराणसी' नगरी में श्री पार्श्वनाथ नामक २३ वें __ गोशाला के ५ वें दिशाचर साधु; दिन के तीर्थकर हो श्री वीरनिर्वाण से २४६ वर्ष | २३ मुहर्स का नाम, सुधर्मा स्वामी का २ मास २३ दिन पूर्व शुभ मिती श्रावण गोत्र; सुधर्मा स्वामी के गोत्र में उत्पन्न शु० ७ को विशाखा नक्षत्र में सायंकाल होनेवाला पुरुष ( अ० मा०)॥ के समय विहार देशस्थ श्री सम्मेदशिखर अग्निशिख-नवे नारायण श्रीकृष्ण के के 'सुवर्णभद्र' कूट (श्री पार्श्वनाथ हिल) अनेक पुत्रों में से एक का नाम । ( देखो वृ० से ६६ वर्ष ७ मास ११ दिन की वय में वि० च०) निर्वाण पद पाया ॥ भानु, सुभानु, भीम, महाभानु, ___ नोट १-श्री पार्श्वनाथ के ९ पूर्व जन्मों सुभानुक, वृहद्रथ, विष्णु, संजय, अकम्पन, के नाम क्रम से निम्न लिखित हैं:-(१) महासेम, धीर, गम्भीर, उदधि, गोत्तम, ब्राह्मणपुत्र-मरुभूत (२) वजूघोष हाथी । वसुधर्म, प्रसेनजित, सूर्य, चन्द्रवर्मा, चारु(३) १२वें स्वर्ग में 'शशिप्रभ' देव (४) कृष्ण, सुचारु, देवदत्त, भरत, शंख, प्रद्युम्न, विद्याधर कुमार 'अग्निवेग' (५) १६ वें और शंबु आदि श्रीकृष्णके अन्य पुत्र थे॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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