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( ६३ ) अग्निभूति वृहत् जैन शब्दार्णव
अग्निमित्र पूर्व जन्म के भाई अग्निमित्र की समान | अर्थात् जो सहोदर भाई बहन थे वही पति त्रैलोक्य-पूज्य मुक्ति-पद प्राप्त किया ॥ पत्नी हो गये। (आगे देखो शब्द "अठारह
(४) अग्निसह (अग्निविप्र) ब्राह्मण का | नाते")॥ पिता॥
अग्निमंडल (तेजोमंडल या वह्निमंडल)इस अग्निभूति का पुत्र 'अग्निसद्द'
नासिका द्वारा निकलने वाले श्वास के जिसका दूसरा नाम “अग्निविप्र' भी
मूल वार भेदों ( मंडलचतुष्क या मंडल था अनेक बार देव मनुष्यादि योनियों
चतुष्टय ) में से एक प्रकार का श्वास जो में जन्म धारण कर अन्त में 'श्री महावीर'
यथाविधि प्राणायाम का अभ्यास करने तीर्थङ्कर हुआ॥
वाले व्यक्ति को (१) उदय होते हुये सूर्य (५) उज्जयनी निवासी एक “सोम शर्मा' नामक ब्राह्मणकी "कायपि" नामक
की समान रक्तवर्ण या अग्नि के फुलिङ्गों स्त्री के गर्भ से उत्पन्न एक पुत्र जिसके लघ
के समान पिङ्गलवर्ण (२) अति उष्ण बाताकानाम सोमभूतिथा। एकदा जब यह
( ३ ) चार अंगुल तक बाहर आता हुआ दोनों विद्याध्ययन करके अपने घरको आरहे |
(४) आवर्ती सहित उर्द्धगामी (५) स्वाथे तो मार्ग में एक "जिनदत्त" मुनि को
स्तिक सहित त्रिकोणाकार (६) वह्नि अपनी माता जिनमती नामक आयिका
बीज से मंडित, दृष्टिगोचर होता है । इस से शरीर समाधान पूछते देखकर दोनों
प्रकार का पवन सामान्यतयः वंश्य (वभाइयों ने श्री मुनिराज की हंसी उड़ाई कि
शीकरण ) आदि कार्यों में शुभ है । भय, देखो विथना ने इस तरुण पुरुष की इस
शोक, पीड़ा, विघ्नादि का सूचक है ॥ वृद्धा स्त्री के साथ कैसी जोड़ी मिलाई है ।
(देखो शब्द "प्राणायाम'')॥ फिर एकदा “एकजिनभद्र'' मुनिको अपनी अग्निमानव-दक्षिण दिशा के अग्निकुमार पुत्रवधु सुभद्रा नामक आर्यिका से शरीर- | देवों का एक इन्द्र (अ० मा०)॥ समाधान पूछते देख कर हास्य की कि |
अग्निमित्र-(१) श्रीऋषभदेव के ८४ गण दैवने इस वृद्ध पुरुष की जोड़ी इस तरुणी |
धरों में से १५ वे का नाम ॥ के साथ कैसी मिळाई है। इस प्रकार दो बार अखंड ब्रह्मचारी सुशोल मुनियों की अशात
यह अन्य प्रत्येक गणधर देवकी समान भाव से हास्य करने के पाप से इन दोनों
ऋद्धिधारी दिगम्बर मुनि द्वादशाँग श्रुतभाइयों ने आय के अन्त में शरीर छोड़कर
ज्ञान के पाठी कई सौ शिप्य मुनियों के इसी उज्जयनी नगर में एक सुदत्त नामक
अधिपति थे ॥ सेठ के वीर्य से और बसन्ततिलका नामक
(२) मन्दिर नगर निवासी गौत्तम नामक वेश्या के गर्भ से एक साथ जन्म लिया ब्राह्मण का पुत्र-इस “अग्निमित्र" की जिनका पालन पोषण देशान्तर में दो वणि- माता कौशाम्बी'' बड़ी चतुर, सुशीला को के घर अलग अलग होने से अज्ञात | और अनेक गुण सम्पन्न विदुषी थी। अवस्था में परस्पर विवाह सम्बन्ध होगया। यह 'अग्निमित्र' उपर्युक्त “अग्निभूति (४)"
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