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________________ IMANDA - IRAL ( ३७ ) वृहत् जैन शब्दार्णव प्राRIVACAARATRNAMENDom अक्षरमातृकाध्यान अक्षरलिपि १३. त्रयोदशाक्षरी-(१) ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं हः | २३. षटसप्तत्यक्षरी-ॐ नमोऽहते केवलिने अ सि आ उ सा नमः (२) ॐ ह्रां ह्रीं परम योगिनेऽनन्त शुद्धि परिणाम विहूँ ह्रौं हः अ सि आ उ सा स्वाहा (३) स्फुरदुरुशुक्लध्यानाग्निनिर्दग्ध कर्मवीजाॐ अर्हत्सिद्ध सयोग केवलि साहा, य प्रासानन्त चतुष्टयाय सौम्याय शान्ताइत्यादि। य मंगलाय वरदाय अष्टादश दोष रहिता-1 १५. चतुर्दशाक्षरी--(१) ॐ ह्रीं स्वहँ नमो य स्वाहा ॥ नमोऽहताणं ह्रीं नमः (२) श्रीमद्वषमादि | २४. सप्तविंशत्यधिकशताक्षरी-चत्तारिमंगलं | वर्चमानान्तेभ्यो नमः, इत्यादि । अरहन्तमंगलं सिद्धमंगलं साहूमंगलं १५. पञ्चदशाक्षरी-ॐ श्रीमदृषभादिवर्द्धमा- केवलिपण्णत्तोधम्मो मंगलं, चत्तारि. नान्तेभ्यो नमः, इत्यादि। लोगुत्तमा अरहंतलीगुत्तमा सिद्धलो१६. षोड़शाक्षरी-अहत्सिद्धाचार्योपाध्याय गुत्तमा साहूलोगुत्तमा केवलिपण्णत्तोसर्वसाधुभ्यानमः, इत्यादि ।, धम्मो लोगुत्तमा, चत्तारिसरणं पवजा१७. द्वाविंशत्यक्षरी-ॐ ह्रां ह्रीं ह्र' ह्रौं ः अह- मि अरहन्तसरणं पव्व जामि सिद्धसरणं सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः, पवजामि साहूसरणं पव्वज्जामि केवालइत्यादि। पण्णत्तोधम्मोसरणं पञ्चज्जामि ॥ १८. त्रयोविंशत्यक्षरी-ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हौं ह्रः इत्यादि इत्यादि अनेकानेक मंत्र हैं जो यथाविधि जपने से सांसारिक या पारलौ. असि आ उ सा अई सर्व शान्तिं कुरुः किक कार्य सिद्धि के लिए तथा आत्मकुरुः स्वाहा, इत्यादि। कल्याणार्थ बड़े उपयोगी हैं । ( विधि १६. पञ्चविंशत्यक्षरी-ॐ जोग्गे मग्गे तच्चे और फलादि जानने के लिए देखो शब्द । भूदे भन्ने भविस्से अक्खे पक्खे जिन 'पदस्थध्यान" और ग्रन्थ 'ज्ञानार्णव' पारिस्से स्वाहा, इत्यादि । प्र०३८)॥ २२०. एकत्रिंश यक्षरी-ॐ सम्यग्दर्शनाय नमः | अक्षरलिपि-अक्षरोकी बनावट यालिखा। सम्यग्नानायनमः सम्यक् चारित्रायनमः वट । इसके पर्यायवाची ( अर्थावबोधक ) सम्यक् तपसे नमः, इ यादि। नाम अक्षरन्यास, वर्णन्यास, अक्षरविन्यास, २९१, पञ्चत्रिंशत्यक्षरी--मोअरहंताणं णमो अक्षरसंस्थान, अक्षगंटी, अक्षरलेख सिद्धाणंणमोआइरियागंणमोउवायाणं इत्यादि हैं। णमो लोए सव्वसाहणं. इत्यादि । अक्षरलिपि देश भेद से अनेक प्रकार की २२. एक सप्तत्यक्षरी-ॐ अर्हन्मुखकमलवा- प्रचलित हैं जिनकी उत्पत्ति और विनाश ! सिनि पापात्मक्षयंकरिश्रतज्ञान ज्वाला देश और काल भेद से कर्मभूमि या कृतः सहस्रप्रज्वलितेसरस्वति मम पाए हन युग की आदि से ही सदैव होता रहा है इन दह दह क्षां क्षों क्षं क्षौं क्षः क्षीर वर और होता रहेगा । वर्तमान कल्प के वर्त्तधवले अमृत सम्भवे वं वं हूं हूं स्वाहा । मान अवसर्पिणी विभाग में सर्व से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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