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अद्भुत-अद्वैतवाद
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अद्भुत-शुभाशुभ शकुन का एक प्रकार । वैदिक विचार- इसके रचयिता नृसिंहाश्रम सरस्वती अद्वैत सम्प्रदाय के प्रणाली में छः शुभाशुभ शकुन अथवा लक्षण उल्लिखित प्रमुख आचार्यों में गिने जाते हैं। इसका रचनाकाल है-(१) अशुभ रूप तथा पशुओं के कृत्य, (२) अद्भुत, सोलहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध होना चाहिए। अर्थात् प्रकृति के सामान्य रूप के साथ विभिन्न दूसरे उग्र अद्वैतब्रह्मसिद्धि-अद्वैत मत का एक प्रामाणिक ग्रन्थ । रूप, (३) भौतिक चिह्न (लक्षण), (४) ज्योतिषिक प्रकृति इसके रचयिता काश्मीरक सदानन्द यति कश्मीरदेशीय सम्बन्धी, (५) यज्ञ की घटनाओं से सम्बन्ध रखने वाले । थे। रचनाकाल १७वीं शताब्दी है। इसमें प्रतिबिम्बवाद तथा (६) स्वप्न ।
एवं अवच्छिन्नवाद सम्बन्धी मतभेदों की विशेष विवेचना अद्भुत गीता-एक संस्कृत ग्रन्थ का नाम, जो सिक्ख गुरु में न पड़कर 'एकब्रह्मवाद' को ही वेदान्त का मुख्य
नानकदेव (१४६९-१५३८) द्वारा रचित माना जाता है। सिद्धान्त बतलाया गया है। जब तक प्रबल साधना के अद्भुत ब्राह्मण-अद्भत ब्राह्मण का सम्बन्ध सामवेद से है।। द्वारा जिज्ञासु ऐकात्म्य का अनुभव नहीं कर लेता तब तक
इसमें अपशकुन तथा उनके निवारण का वर्णन है। वह इस वाग्जाल में फंसा रहता है, अन्यथा 'जाते द्वैतं न अद्भुत रामायण-रामभक्ति शाखा का एक ग्रन्थ । इसकी। विद्यते । रचना अध्यात्मरामायण के पूर्व की मानी जाती है, अद्वैतरत्न-मल्लनाराध्य कृत सोलहवीं शताब्दी का एक क्योंकि अध्यात्मरामायण का रचयिता अद्भुत रामायण, प्रकरण ग्रन्थ । इसके ऊपर 'तत्त्वदीपन' नामक टीका स्वयं भुसुण्डिरामायण, योगवासिष्ठ आदि रामभक्ति विषयक ग्रन्थकार ने लिखी है। मल्लनाराध्य ने द्वैतवादियों के ग्रन्थों से परिचित था। अद्भत रामायण में अखिल विश्व मत का खण्डन करने के लिए इस ग्रन्थ की रचना की जननी सीताजी के परात्परा शक्ति वाले रूप की बहत
परा शक्ति वाल रूप की बहुत की थी। सुन्दर स्तुति की गयी है।
अद्वैतरत्नलक्षण-मधुसूदन सरस्वती रचित यह ग्रन्थ द्वैतअद्वयवादी-भारतीय दार्शनिकों को मोटे तौर पर तीन बाद का खण्डन करते हुए अद्वैतवाद की स्थापना करता श्रेणियों में रखा गया है : (१) आस्तिक, (२) नास्तिक और है । यह १७वीं शताब्दी में रचा गया था। (३) अद्वयवादी। अद्वयवादी वे दार्शनिक हैं जो अद्वैत अद्वैतरसमञ्जरी-सदाशिवेन्द्र सरस्वती द्वारा अठारहवीं वाद में विश्वास रखते हैं । दे० 'अद्वैतवाद' ।
शताब्दी में लिखी गयी, यह सरल एवं भावपूर्ण रचना अद्वैत-यह शब्द अ+द्वैत से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ है है। यह प्रकाशित हो चुकी है। सदाशिवेन्द्र महान् द्वैत (दो के भाव) का अभाव । दर्शन में इसका प्रयोग योगी और अद्वैतनिष्ठ महात्मा थे। उनके उत्कृष्ट जीवन 'मूल सत्ता' के निर्देश के लिए हुआ है। इसके अनुसार की छाप इस ग्रन्थ में परिलक्षित होती है। वस्तुतः एक ही सत्ता 'ब्रह्म' है। आत्मा और जगत् अद्वैतवाद-विश्व के मूल में रहनेवाली सत्ता की खोज अथवा आत्मा और प्रकृति में जो द्वैत दिखाई पड़ता है दर्शन का प्रमुख विषय है। यह सत्ता है अथवा नहीं वह वास्तविक नहीं है; वह माया अथवा अविद्या का परि- अर्थात् यह सत् है या असत्, भावात्मक है या अभावात्मक, णाम है। सम्पूर्ण विश्वप्रपञ्च अपने बदलते हुए दृश्यों के एक है अथवा दो या अनेक ? ये सब प्रश्न दर्शन में उठाये साथ मिथ्या है, केवल ब्रह्म सत्य है। अंतिम विश्लेषण में गये हैं। इन समस्याओं के अन्वेषण तथा उत्तर के अनेक आत्मा और ब्रह्म भी एक ही हैं । इस सिद्धान्त का पोषण मार्ग और मत हैं, जिनसे अनेक दार्शनिक वादों का उदय जो दर्शन करता है वह अद्वैत है। दे० 'वेदान्त' और हुआ है । जो सम्प्रदाय मूल सत्ता को एक मानते हैं उनको 'शङ्कराचार्य' ।
एकत्ववादी कहते हैं । जो मूल सत्ता को अनेक मानते हैं अद्वैतचिन्ताकौस्तुभ-अद्वैतवादी सिद्धान्त पर महादेव सर- वे अनेकत्ववादी, बहुत्ववादी, वैपुल्यवादी आदि नामों से स्वती द्वारा लिखित 'तत्त्वानुसन्धान' के ऊपर उन्हीं के अभिहित हैं। दर्शन का इनसे भिन्न एक सम्प्रदाय है द्वारा लिखी गयी टीका । इस ग्रन्थ का रचनाकाल अठार- जिसको 'अद्वैतवाद' कहा जाता है। इसके अनुसार 'सत्' हवीं शताब्दी है।
न एक है और न अनेक । वह अगम, अगोचर, निर्गुण, अद्वैतदीपिका-अद्वैत वेदान्त का एक युक्तिप्रधान ग्रन्थ । अचिन्त्य तथा अनिर्वचनीय है। इसका नाम अद्वैतवाद
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