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[प्रथमकाण्डे
अमरकोषः। १ प्रबन्धकल्पना कथा २ प्रवहिका प्रहेलिका।
, कथा (स्त्री), 'कथा' अर्थात् "वाक्य विस्तारकी कल्पनावाले प्रन्धका १ नाम है । ( 'जैसे-'रामायण, कथासरित्सागर, बृहत्कथामञ्जरी,.....")॥
२ प्रवह्निका ( + प्रवाहिका, प्रवल्ही, प्रश्नदूती, विपादिका ), प्रहेलि. का (२ स्त्री), 'पहेली, बुझौवल' के २ नाम हैं । (संस्कृतकी पहेली जैसे'पानीयं पातुमिच्छामि स्वत्तः कमललोचने । यदि दास्यसि नेच्छामि न दास्यसि पिबाम्यहम्' । इस श्लोकमें दोनों 'दास्यसि' पदको दानार्थक मानकर 'दोगी' यह अर्थ करनेपर सन्देह होता है और एक 'दास्यसि' पदको उक्कार्थक तथा दूसरे 'दास्यसि' पदका 'दासी हो' यह अर्थ माननेपर संदेह दूर हो जाता है। हिन्दीकी पहेली जैसे-'सारी लुगड़ी जल गई, जला न एको तागा। घरके लड़के फंस गये, घर खिड़कीसे भागा'। इस पद्यमें 'समूची लुगड़ी अर्थात् कन्धाके जाने पर एक तागाका भी नहीं जलना, चैतन्य गृहवासियों का फंस जाना और अचैतन्य घरका भाग जाना, ये सब सन्देह उत्पन्न होते हैं; किन्तु 'जल गया' इस शब्दका 'जलमें गया' ऐसा अर्थ करनेपर एक तागाका भी नहीं जलना असन्देहार्थक है, तथा जाल में चैतन्य मछलियोंका फँस जाना और जालके छिवरूपो खिड़कीसे पानोरूपी मछलियों के घरका भाग जाना ऐसा अर्थ करने से कोई सन्देह नहीं होता है, इसी तरह प्रत्येक भाषामें 'पहेली' होती है)॥
अष्टादश पुराणानि पुराणशाः प्रचक्षते । पाम ब्राह्म वैष्णवञ्च शैवं भागवतं तथा ॥१॥ तथाऽन्यन्नारदोयश्च मार्कण्डेय सप्तमम् आग्नेयमष्टमं चैव भविष्य नवमं स्मृतम् ॥२॥ दशमं ब्रह्मवैवर्त लैङ्गमेकादशं तथा। वाराह द्वादशश्चैव स्कान्दश्चात्र प्रयोदशम् ।।३।। चतुर्दशं वामनकं कोर्म पञ्चदशं स्मृतम् । मात्स्यन्त्र गारुड चेव ब्रह्माण्डञ्च ततः परम् ।।४।' इति।।
प्रत्येकपुराणस्य श्लोकसङ्ख्याविषयादिज्ञानार्थ विष्णुपुराणस्य त्रिपञ्चाशत्तमोऽध्यायो द्रष्टव्य इति । १. तदुकम्-'व्यक्तीकृत्य कमप्यर्थं स्वरूपार्थस्य गोपनम् ।
यत्र बाधार्थसम्बद्धं कथ्यते सा प्रहेलिका ॥१॥ इति ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org