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अमरकोषः।
[ प्रथमकाण्डे१ स्त्रियामृक्सामयजुषी इति वेदास्त्रयस्त्रयी ।। ३ ।। २ शिक्षेत्यादि श्रुतेरजमोङ्कारप्रणवौ समो। ४ इतिहासः पुरावृत्त५मुदात्ताधास्त्रयः स्वराः ॥ ४॥ ६ आन्वीक्षिकी
कर्म'का । नाम है। ('स्मृतियों के भी वेदमूलक होनेसे स्मृत्युक्त कर्म भी 'धर्म' ही हैं')॥
१ ऋक ( = ऋच, स्त्री), साम (= सामन्), यजुः (= यजुस । २ न), अर्थात् 'ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद' थे ३ 'वेद' हैं, इन तीनों का 'प्रयी' ( स्त्री), यह ! नाम है।
२ शिक्षा (स्त्री), आदि ( 'आदि शब्दसे 'कल्प १, व्याकरण २, निरुक्त ३, ज्योतिष ४ और छन्दः ५, इनका संग्रह है') को 'वेदाङ्गम्' (न) 'वेदाङ्ग' अर्थात् 'वेदोंका अङ्ग' कहते हैं ।
३ ओङ्कारः ( + ॐकारः ), प्रणवः, (२ पु), 'वेदारम्भ' अर्थात् 'ओंकार' के २ नाम हैं ।
४ इतिहासः (पु), 'पुरावृत्तम् (न), 'इतिहास' के २ नाम हैं। ('पूर्व. कालमें बीती हुई कथाको 'इतिहास' कहते हैं, जैसे-'महाभारत,......')॥
५ उदात्तः (पु). आदि ('आदि पदसे नुदात्त और स्वरित' का संग्रह है'), ३ को 'स्वरः२ (पु), अर्थात् 'स्वर' कहते हैं ।
६ आन्वीक्षिकी (स्त्री), 'गौतम आदिकी रचित तर्कविद्या' का . नाम है ॥
१. तदुक्तम् -'शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं ज्योतिषां गतिः।
छन्दोविचितिरित्येष षडङ्गो वेद उच्यते ॥ १॥ इति ॥ २. तदुक्तम्-'उदात्तश्चानुदात्तश्च स्वरितश्च स्वरास्त्रयः ।
चतुर्थः प्रचितो नोको यतोऽसौ छान्दसः स्मृतः ॥ १॥इति ।। ३. भान्वीक्षिक्यादयश्चतस्रो विद्याः कामन्दके
'अन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता दण्डनीतिश्च शाश्वती ।
विषा घेताश्चतस्रस्तु लोकसंस्थितिहेतवः ॥१॥ इति ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org