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हिङ्गादिसंग्रह वर्गः ५] मणिप्रभा व्याख्यासहितः ।
पिच्छावितण्डाकाकिण्यश्वर्णिः शाणी दुणी दरत् । सातिः कन्था तथाऽऽसन्दी नाभी राजसभापि च ॥ ९ ॥ झल्लरी चर्चरी पारी छोरा लट्टा च सिध्मला । लाक्षा लिक्षा च गण्डूषा गृध्रसी चमसी मसी ॥ १० ॥ इति खीलिङ्गसंग्रहः ।
अथ पुंलिङ्गसंग्रहः । १ पुंस्ये २ सभेदानुचराः सपर्यायाः सुरासुराः ।
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स्वा० ), विच्छा ( मोचरस अर्थात् सेमर का गोद । + भात आदिका मांद ), वितण्डा ( बखेड़ा ), काकिणी ( + काकिनी । चौथाई पैसा, दुकड़ा ), चूर्णिः ( अष्टाध्यायीका पातञ्जल भाग्य ), शाणी (सनका वन-विशेष महे०, कसोटी, सान अर्थात् शस्त्रको तेज करनेका यन्त्र-विशेष + 'काणी' अर्थात् संकोच ), दुणी ( गोजर + कच्छपी ), दर ( ग्लेच्छ जाति ), सातिः ( समाप्तिः ), कन्या ( चिथड़ा ), आसन्दी ( एक प्रकारका आसन, या बेंतका आसन ), नाभिः ( पेटकी ढोंडी ), राजसभा ( राजाकी सभा ), झल्ली (हुडुक बाजा), चर्च (ताली या गान - विशेष ), पारी ( हाथी के पैर बाँधने की रस्सी, पानभाण्ड घड़ा आदि ), होरा (लग्न, लग्नार्द्ध, जातक ), लट्बा ( ग्रामका गौरैया पक्षी, करअ फल, वाद्य- विशेष ), सिमला ( सूखी मछली, गीली खुजली, मल 1 + सफेद कुष्ठ रोग सी० स्वा० ), लाक्षा (लाइ ), लिक्षा (जुमाका अण्डा, लीख ), गण्डूषा ( + गण्डूषः पु । पानीले मुख भरना, कुल्ला ), गृध्रसी (उरु- सन्धिमें होनेवाला वातरोग - विशेष ), चमसी ( उड़द या मसूर आदिका बेसन, काष्ठका बना हुआ यज्ञपात्र विशेष + प्रणीतापात्र महे० ), मसी ( स्याही ), ये ४२ शब्द स्त्रीलिङ्ग होते हैं ॥ इति स्त्रीलिङ्गसंग्रहः ।
अथ पुंलिङ्गसंग्रहः ।
१ यहाँ से आगे 'द्विहीने (३ । ५ । २२ ) के पूर्व 'पुंस्त्वे, इसका अधिकार होने से इसके मध्यवर्ती (बीचवाले) सब शब्द २ भेद और अनुचरके सहित १ सुर ( देवता ) तथा २
पुंलिङ्ग होते हैं । असुर ( दैश्य )
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