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अमरकोषः।
[तृतीयकाण्डे१ स्त्री स्यात्काचिन्मृणाल्याविधिक्षाऽपचये यदि । २ लङ्का शेफालिका टीका धातकी पञ्जिकाऽऽढकी ॥ ७॥ सिध्रका 'सारिका हिका प्राचिकोहका पिपीलिका । तिन्दुकी कणिका भक्तिः सुरजासूचिमायः॥ ८॥
१ अपचय (न्यूनता, कमी) विवक्षित रहनेपर मृणाली आदि (कुम्भी प्रणाली,......) शब्द स्त्रीलिङ्ग होते हैं। ('जैसे- अल्पं मृणालं (थोड़ा मृणाल (मृणाली, कुम्भी, प्रणाली, मुसली, छत्री, पटी, तटी, मठी, वंशी, गृह्यकाण्डी,......" ('काचित्' ग्रहण करनेसे 'अल्पो वृतः' इति विग्रहे 'वृक्षकः' पुंलिङ्ग ही होता है स्त्रीलिङ्ग नहीं होता।
१ 'ड्याबूङन्तम्' (३।५।५) इत्यादिसे उक्त लिङ्गवाले कुछ शब्दोंको भी सुखपूर्वक लिङ्ग-ज्ञानके लिये ‘कान्त, खान्त, ....' के क्रमसे कहते हैं । 'लङ्का ( रावणकी राजधानी ), शेफालिका (निर्गुण्डी), टीका (ग्रन्थादिकी ग्याख्या), धातकी (धव वृक्ष-विशेष), पञ्जिका ( सम्पूर्ण पदोंकी म्याख्या), आढकी ( अरहर, जिसकी दाल होती है ), सिध्रका ('सीध'नामका वृक्ष-विशेष), सारिका ( + शारिका । मैना पक्षी), हिक्का (हिचकी आना), प्राचिका (वनमक्खी। + पक्षि-विशेष क्षी० स्वा०) उल्का (लुक्क ) पिपीलिका (चींटी या दीमक । + जो अप्रसिद्ध है या पहले अनुक्त है वही यहाँपर तत्तन्नाम-निर्देश-पूर्वक कहा गया है अतः ‘शनैर्याति पिपीलकः' यहाँ पुंलिङ्गका निषेध नहीं हुआ, इसी तरह सर्वत्र समझना), तिन्दुकी (तेंदू वृक्ष), कणिका (परमाणु, अतिसूक्ष्म या गेहूँ आदिका आटा, जयपर्ण वृक्ष या अरणि वृक्ष), भङ्गिः (रचना, कौटिल्य-भेद) सुरङ्गा (सुरङ्ग) सूचि (सूई ) माढिः (दन्य या दैन्य प्रकाशन, पत्रिशिरा अर्थात् पत्तेकी नस । + देशः कवच क्षी०
१. 'शारिका' इति पाठान्तरम् ॥
२. 'ड्याबूङन्तम्' ( ३।५५) इति सिद्ध नामानुशासनार्थो लङ्कादीनां पाठः । मढ्यादी. नामुमयानुशासनार्थः । शेफलिकादीनां तु व्यर्थः स्वपर्यायपठित्वात' इति भा० दी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org