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अव्ययवर्गः ४] मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
१ आहो उताहो किमुत विकल्पे किं किमूत च । २ तु हि च स्म ह वै पादपूरणे ३ पूजने स्वति ॥ ५॥ ४ दिवाऽहीत्य५थ दोषा च नक्तं च रजनावपि । ६ तिर्यगर्थे माचि तिरोऽप्य७५ सम्बोधनार्थकाः ॥ ६ ॥
स्युःभ्याट प्याडल हे है भोः८समया निकषा हिरुक। २ सलकिते तु सहसा स्थात् १० पुरः पुरतोऽग्रतः ॥ ७॥ ११ स्वाहा देवहर्थािने श्रौषट् वौषट् वषट् स्त्रधा। १२ किञ्चिदीपानायल्पे १३ त्याभुत्र भवान्तरे ॥ ८॥ १४ व वा यथा तदेवं साम्ये
3 आहो ( + अहो), उताहो, किमुत, किम् , किमु, उत, ५ का 'वितर्क करना,विकल्प' अर्थ है ॥ ____२ तु, हि, च, स्म, ह, व, ६ श्लोक के वरण को पूरा करने में' प्रयुक्त होते हैं ।
३ सु, अति, २ का 'पूजा बड़ाई' अर्थ है ॥ ४ दिवा, १ का दिन में अर्थ है । ५ दोषा, नक्तम् ( + उपा)२ का 'रात में' अर्थ है ॥ ६ साचि, तिरः ( = तिरस ) २ का 'तिर्छा' अर्थ है ॥
७ पाट , प्याट् , अङ्ग, हे, है, भोः ( = भोस् ), ६ का 'सम्बोधन' (पुकारना, बुलाना ) अर्थ है।
८ समया, निकषा, हिरुक् , ३ का 'समीप' अर्थ है ॥ ९ सहसा, १ का 'एकाएक' अर्थात् अतर्कित (विना विचार किये) अर्थ है ।।
१० पुरः (पुरस्) पुरतः ( = पुरतस्), अग्रतः ( = अग्रतस् ), ३ का 'मागे पहले' अर्थ है ॥
॥ स्वाहा, श्रौषट, वौषट, वषट्, स्वधा, ये ५ देवताओंको हविष्य देनेमें' प्रयुक्त होते हैं, (इनमें 'स्वधा' शब्द, 'पितरोको कव्य देने में प्रसिद्ध है)।
१२ किश्चित् , ईषत् , मनाक् , ३ का 'थोड़ा' अर्थ है ॥ १३ प्रेत्य, अमुत्र, २ का 'परलोक' अर्थ है ॥
१४ व ( + वत् ), वा, यथा, तथा, इव, एवम् , ६ का 'समानता' (बराबरी, उपमा, सादृश्य ) अर्थ है ॥
१. 'वढा' इति पाठान्तरम ।
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