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' मानार्थवर्ग:३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
१ प्रसूरश्वापि २ भूद्यावौ रोदस्यौ रोदसी च ते । ३ ज्वालाभालौ न पुंस्यचिज्योतिर्भद्योतयषिषु ।। २३०॥ ५ पापापराधयोरागः ६ खगवाल्यादिनोर्वयः । ७ तेजः पुरीषयोर्वों ८ महस्तूत्सवतेजोः ।। २३१ ॥ ९ रजोगुणे व स्त्रीपुष्पे१०राहो ध्वान्ते गुणे तमः । ११ छन्दः पोऽभिलाषेचररतपः इच्छादिकर्म च ॥ २३२ ॥ १३ सहो बल सहा मागो
, 'प्रसूः' (बी) के घोड़ी, माता, केला, लता, ४ अर्थ हैं ॥
२ 'रोदस्यो' (= रोदसी स्त्री ), 'रोरसी' (रोदस न । २ नि० द्विव) का, जमीन-आसमान, " अर्थ है ॥
३ 'अचिः' (= अचिस स्त्री न ) के ज्वाला, किरण था कान्ति, २ अर्थ हैं । ४ 'ज्योतिः' (- ज्योतिस् न ) के नक्षत्र, प्रकाश, दृष्टि, ज्योतिष शास्त्र,
५ 'आग' (= आगस् न ) के पाप, अपराध, २ अर्थ हैं ।
६ 'वयः' (= वयस् न) के चिड़िया, अवस्था ( बाल्य, यौवन, वार्द्धक्य भादि), १ अर्थ हैं।
७ 'वर्चः' (॥ वर्चस् न) के तेज, विट (मैला, पाखाना), रूप, ३ अर्थ हैं । ८ 'मह' (= महस न । + महः = मह पु) के उत्सव, तेज, २ अर्थ हैं।
९ 'रज' (= रजसन । + रजः = रज पु)के रजोगुण, स्त्रीका मासिक मार्तव, १ अर्थ हैं।
१० तमाः (= तमस् पु) का राहु ग्रह, १ अर्थ और 'तमाः' (तमस् न) के अन्धकार, तमोगुण, शोक ( मोह, मूर्छा ), ३ अर्थ हैं ।
११ 'छन्दः' (= छन्दस् न ), पच (श्लोक आदि), अभिलाषा, वेद, स्वइन्दता, ४ अर्थ हैं।
'तयः (= तपसन) का तपस्या (कृच्छ, चान्द्रायण शादि कठिनवत), तपोलोक, धर्म, ३ अर्थ 'तपा' (s) के माघ महीना, शिशिर ऋतु, २ अर्थ हैं ।
११ 'सहः' (सहस् न) के बल, ज्योतिष, १ अर्थ और 'सहाः' (= सहस्पु )मार्ग (अगहन) महीना, हेमन्त ऋतु, २ अर्थ हैं।
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