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ज्ञानार्थवर्गः ३ ]
मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
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१ प्रत्यक्षेऽधिकृतेऽभ्यक्षो २ रुतस्त्वप्रेरणनिकणे । ३ "व्याज संख्यामध्ये लक्षं ४ घोषो रखती (८८ ) कपिशीर्ष भिन्तिभ्टङ्गेऽनुतर्षश्चकः सुरा (२९) ७ दोषो वातादिके दोषा रात्री ८ दक्षोऽपि कुक्कुटे (६०) ९. शुण्डाप्रभागे गण्डूशे द्वयोश्च खपूरणे (९१) इति षान्ताः शब्दाः १
अथ सान्ताः शब्दाः ।
१० र विश्वेदो हंसी
१ ' अध्यक्षः' (त्रि ) के प्रत्यक्ष, अधिकारी ( मालिक, ) २ अर्थ है ॥ २ 'रुतः' (त्रि ) के प्रेसरहित, रूखा, अर्थ हैं ॥
[' लक्षम्' (न) के व्याज, लाख संख्या, निशाना, ३ अर्थ हैं ] ॥ ४ [ 'घोषः' (पु) के शब्द (हल्ला, आबाज़), अहीरोंके रहने का स्थान, 4 अर्थ हैं ] ॥
५ [ 'कपिशीर्षम् ' ( न ) के दिवालका ऊपरी भाग, शृङ्ग, अर्थ हैं ] ॥ ६ [ 'अनुतर्षः' (पु) के मदिरा पीनेका प्याका, मदिरा, अभिलाषा, तृष्णा, ४ अर्थ हैं ] ॥
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[ 'दोष' (पु) के वात आदि (पित्त, कफ) तीन दोष, दोष (अपराध), २ अर्थ और 'दोषा' ( अव्य० ) का रात, १ अर्थ है ] ॥
• [ 'दक्षः' (g) का मुर्गा, १ अर्थ और 'दक्षः' (नि) का चतुर, १ अर्थ है || ९ [ 'गण्डूषः' (पु) के हाथीके सूंड़का आगेवाला भाग, १ अर्थ और 'गण्डूष:' ( पु स्त्री ) का कुल्ला ( मुखमें पानी भरना ), १ अर्थ है ] ॥ इति षान्ताः शब्दाः ।
अथ सान्ताः शब्दाः |
१० 'हंस' (पु) के सूर्य, हंस पक्षी, योगि-भेद, ३ अर्थ हैं ॥
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१. 'व्याज... "मुखपूरणे' इत्ययं क्षेपकांशः क्षी० स्वा० व्याख्यायामुपलभ्यमानः प्रकृतोपयोगितया मूळे क्षेपकत्वेन स्थापितः ॥
२. तदुक्तम्- 'कुटीचको बहूदको हंसश्चैव तृतीयकः ।
चतुर्मो परमो हंसो योग्यः पश्चात्त उत्तमः ॥ इति हारीतः ॥
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