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अमरकोषः। । तृतीयकाण्ड १ कर्पूर्वार्ता करीषामिः कः कुल्याभिधायिनी। २ भावे तरिक्रयायां च पौरुष ३ विषमप्सु च ।। २२३ ।। ४ उपादानेऽप्यामिषं स्या ५ दपराधेऽपि "किरिवषम् । ६ स्याद् वृधी लोकधास्वंशे वत्सरे वर्षमलियाम् ।। २२४ ।। ७ प्रेक्षा नृत्येक्षणं प्रक्षा ८ भिक्षा सेवाऽऽर्थना भृतिः ।
१ रिघट शोभाऽपि १० त्रिषु परे ११व्यक्ष कासयनिकश्योः ॥२२५॥ (पु) के जुआ खेलनेका पाशा, कर्ष ( सोलह मासा, प्रमाण-विशेष), पहिया, बहेबा, व्यवहार ( आय व्ययका विचार अर्थात् लेन देन ), ५ अर्थ है ॥
''कडूः' (पु) का खेती (जीविका), उपला (गोहरा, गोइंठा ) का भार, २ अर्थ और 'ग' (बी) का नहर, १ अर्थ है।
२ पौरुषम्' (न) के पुरुषका भाव, पुरुषका कर्म (पुरुषार्थ), तेज १ अर्थ और 'पौरुषम' (त्रि) का पोरसा (हाथ उठाये हुए मनुष्य के साढ़े चार हाथका प्रमाण विशेष) १ अर्थ है।
३ 'विषम्' ( न) के जल, जहर, २ अर्थ हैं॥
४ 'आमिषम्' (नपु) के उपादान (घूस, रिस्वत), भोग्य वस्तु, संभोग, मांस, " अर्थ हैं।
५ किलिषम्' (+किल्मिषम् । न) के अपराध, पाप, रोग, ३ अर्थ हैं ।
६ वपम् (पु न ) के वर्षा, जम्बूद्वीपके खण्ड (१।। में उक्त भारत आदि नव वर्ष), वर्ष (साल), ३ अर्थ और 'वर्षा' (स्त्री नि० ब० व.) का वर्षा ऋतु, १ अर्थ है ॥
७ 'प्रेक्षा' (स्त्री)के नाच, देखना (+ नाच देखना, बुद्धि, ३ अर्थ हैं ।।
८ भिक्षा' (स्त्री) के सेवा, याचना, वेतन, भिक्षा में मिला हुआ पदार्थ, ५ अर्थ हैं ॥
९ स्विट' ( = स्विष स्त्री ) के शोभा, वचन, तेज, ३ अर्थ हैं। १० य हांसे आगे सब पकारान्त शब्द त्रिलिङ्ग हैं ।
११ 'न्यक्षम्' (त्रि ) के साकल्य, नीच, २ अर्थ यक्ष:' (पु) का परशुराम, ५ अर्थ है।
१. 'किल्मिषम् इति पाठान्तरम् ।
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