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मानार्थवर्गः ३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
४६ १ काकमत्स्यात्खगौ घासौ २ कक्षौ तु तृणवीरुधौ ।। २१९ ।। ३ अभीषुः प्रग्रहे रश्मौ ४ प्रैषः प्रेषणमर्दने । ५ पक्षः' सहायेऽप्युदणीषः शिरोवेष्टकिरीटयोः ।। २२० । ७ शुकले मूषिके श्रेष्ठे सुकृते वृषभे वृषः। ८ कोषोऽस्त्री कड़मले खड्गपिधानेऽर्थोघदिव्ययोः ॥ २२१ ॥ ९ द्यतेऽले शारिफलकेऽप्याकर्षो१०ऽथासमिन्द्रिये ।
ना द्यूताने कर्षचक्रे व्यवहारे कलिद्रुमे ॥ २२२ ।। , 'ध्वाङ्कः' (पु) के कौआ, मछलीको खाने वाला पक्षी (बगुला), भिक्षुक, तक्षक , कपालके बीज निकालनेका यन्त्र विशेष, ६ अर्थ हैं ।
२ 'कक्षः' (पु) के घास, लता, काँख जङ्गल, ४ अर्थ हैं।
३ 'अभीषुः' ( + अभीशुः । पु ) के रस्सी (घोड़े आदिका बारडोर ), किरण, २ अर्थ हैं।
४ 'प्रैषः' ( + प्रेषः । पु) के भेजना, पीडा, २ अर्थ हैं।
५ 'पक्षः' (पु) के सहाय, पखवारा (आधा महीना अर्थात् कृष्ण पक्ष, शुक्लपक्ष), पा, प्रह, साध्य, अवरोध, कश आदिसे परे (आगे) रहनेपर समूह (जैसे-के शपक्षः, कापसः,... ....... ), बल, मित्र, पंख, रुचि विकविपत (जैसे-भवदीयः पक्षः, अस्मदीयः पक्षः,...... ), १२ भर्थ हैं ।
६ उणीषः' (पु। +न ) के एगढ़ी, किरीट (मुकुट) २ अर्थ हैं ।। ___वृषः' (पु) के बहुत पराक्रमवाला ( + अण्डकोश), चूहा, श्रेष्ठ, धर्म, वृष नामका दूसरा राशि, बैल, ६ अर्थ हैं ।
८'कोषः' ( + कोशः, पु न ) के फूलकी विना खिली हुई कशी (कोदो), तलवारकी म्यान, खजाना दिव्य ( शपय-भेद), ४ अर्थ हैं ।
९ 'आकर्षः' (पु) के जुभा, जुआ खेलने का पाशा, सतरंज आदि खेलने की बिसात, ( कपड़ा या पटरी आदि), खींचना, इन्द्रिय, ५ अर्थ हैं ।
१० 'अक्षम्' (न) के इन्द्रिय, तूतिया, पोचरखार, ३ अर्थ और 'अक्ष' १, 'सहायेऽप्युष्णीष' इति पाठान्तरम् ।।
२. 'कोषो....."दिव्य योः' इत्येषोंडशो महे० पुस्तके नोपलभ्यते नापि तेन ग्यास्यास शी. स्वा० मा० दी० मूलेलभ्यते व्याख्यातश्च ताभ्याम् ।।
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