________________
नानार्थवर्गः३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
४६१ -१ आली लख्यावली अपि ॥ १९८॥ २ अन्यम्बुविकृती वेला कालमर्यादयोरपि । ३ बहुलाः कृत्तिका गावो बहुलोऽग्लो शितो निषु ।। १५९ ।। ५ लीला बिलातक्रिययो ५ रुपला शर्करापि च ! ६ शोणितेऽम्भसि कीखालं ७ मूलनायो शिफोभयोः : २०० ।। ८ जालं समूह आनायगवाक्षक्षारकेष्वपि । ९ शीलं स्वभावे सद्वृत्ते १० सस्ये हेतुकृते फलम् । २०१ ॥ , 'आल' (बी) के सखो, पङ्कि, २ अर्थ हैं ।
२ 'वेला' (स्त्री) के चन्द्रमांक ४दय हानेपर समुदका बढ़ना, समय, मर्यादा, तट, बुधकी सी, धनियों का भोजन, विना दुःख का मरना, ७ अर्थ हैं ।।
३ 'बहला' (स्रो, ताराओंके बहुत होनेसे नित्य बहुवचन है) कृत्तिका नामका तीसरा नक्षत्र, गौ, १ अर्थ; 'बहुल:' (पु) के अग्नि, कृष्णपक्ष, २ अर्थ और 'बहुलः' (त्रि ) के काला वर्ण, बहुत, २ अर्थ हैं ।
४ 'लीला' (स्त्री) के विलास, केलि, शृङ्गारभावसे उत्पन्न किया-विशेष, ३मर्थ हैं।
५ 'उपला' (स्त्री) के शिकडी ( पत्थरका छोटा १ कक), खाँड़ या चीनी, २ अर्थ और 'उपलः' (पु) के पत्थर, एन, २ अर्थ है ॥
६ 'कीलालम् (न) खून, पानी, २ अर्थ हैं।
७ 'मूलम्' ( न ) के पहला, जर, मूल नामक उन्नीसवाँ नक्षत्र, (+मूल. धन), समीप ( जैसे-वृतमूले तिष्ठति, ....... ), ४ अर्थ हैं ॥
'जालम्' (न) के समूह, जाल (फन्दा), गवाक्ष (खिडकी, जंग. ला), विना खिली हुई कल्ली, दम्म, ५ मथ और 'जाल'(पु) का कदम्बका पेड़, । अर्थ है।
९ 'शीलम्' (न) के स्वभाव, सदाचरण (अच्छी रहन ), २ अर्थ हैं ।
१. 'फलम' (न) के धान्य वृक्ष भादिका फल, फल ( लाभ, जैसेयज्ञका फल स्वर्ग,......), बाणकी नोक, जातीफल, त्रिफला (आँवला, हरे, बहेड़ा), कंकोल, सम्पचि, ७ अर्थ हैं। १. 'शिफार्थयो। इति पाठान्तरम् ।
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only