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अमरकोषः ।
[ तृतीयकपडे-
४६०
१९५ ॥
१ करोपहारयोः पुंसि 'बलि: प्राण्यङ्गजे स्त्रियाम् ॥ २ स्थौल्यसामर्थ्य सैन्येषु बलं ना काकलीरिणोः । ३ वातूलः पुंसि वात्यायामपि बातासहे त्रिषु ॥ १९६ ॥ ४ मेलिङ्गः शठे व्याक्तः पुंसि श्वापपैयः ।
५ मलोऽस्त्री पापचिट किट्टान्य ६ स्त्री शूलं रुपाधम् ॥ १९७ ॥ ७ शङ्कावपि द्वयोः कीलः ८ पालिः रूयश्रयङ्कपङ्गिषु । कला शिल्पे कालभेदेऽपि -
२.
१ 'बलि' ( + वलिः । पु) के राजाका कर ( कौड़ी, टैक्स, मालगुज़ारी ), उपहार ( भेंट, नजर ), 'बलि' नामक दैश्य, चंवरका दण्ड, ४ अर्थ और 'बलि' (स्त्री) के बुढ़ापे से चमड़ेका सिकुड़ना, घरमें लगा हुआ काष्ट विशेष, पेटी ( पेटके चमकी सिकुड़न ), ३ अर्थ हैं ॥
२ 'बलम्' (न) के मोटाई. सामर्थ्य ( ताकत ), सेना, रूप, ४ अर्थ और 'बल:' ( 9 ) के कौभा, बलराम (कृष्णजीके बड़े भाई), 'बल' नामका दैश्य ( जिसे इन्द्रने मारा था ), ३ अर्थ हैं ॥
३ ' वातूल:' ( + वातुलः । पु) का वायुसमूह ( आँधी), १ अर्थ और 'वातूलः' (त्रि ) का बातूनी ( बहुत बात करनेवाला ), १ अर्थ हैं ॥
४ ' व्यालः' (त्रि ) का शठ, १ अर्थ और 'व्यालः' ( पु ) के हिंसक जन्तु, साँप, बदमाश हाथी, ३ अर्थ है ॥
५ 'मल:' ( पु न ) के पाप, मैठा ( विष्ठा ), मेल, ३ अर्थ हैं ॥
६ 'शूलम्' (पुन) के शूल नामक रोग विशेष, हथियार (त्रिशूल ), २ अर्थ हैं ॥ ७ 'कीलः' (पुत्री) के खूठा जादि, आगकी ज्वाला, शङ्कु, ३ अर्थ हैं ॥ ८ 'पालि:' ( + पाली । स्त्री ) के कोना या घार, अङ्क ( गोद ) पङ्कि, श्मश्रु ( दादी-मूँछ ) से युक्त स्त्री, प्रान्त, पुल, कल्पित भोजन, बड़ाई, कर्णलता, प्रस्थ, १० अर्थ है ॥
९ 'कला' ( स्त्री ) के कारीगरी ( यह ३४ प्रकारकी होती है । एतदर्थं परिशिष्ट देखिये ), ३० काष्ठाका (८ सेकेण्ड ; पृ० ४४ में उक्त ) समय - विशेष, मूल धनकी वृद्धि ( सूद ), सोलहवाँ हिस्सा, चन्द्र-कला, ५ अर्थ हैं ॥
१. 'बलिः' इति पाठान्तरम् ।
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