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नामावगः ३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः । १ मुक्ताशुद्धौ व तारः स्यारच्छारो वायौ स तु त्रिषु ॥ १६६ ॥
कंबुरे३ऽथ प्रतिहाजिसंविदापरसु संगरः।
वेदभेदे गुप्तवादे मन्त्री ५ मिको रवावपि ।। १६७ ॥ १ मनेषुयुपण्डेऽपि स्वरुअगुहोऽप्यवस्करः । ८ आडम्बरस्तूर्यरवे गजेन्द्राणां त गजिते ।। १६८ ॥
'अभिहारोऽभियोगे २ चौर्य संहनेऽपि च । १० म्याज्जनमे परीवारः खगको परिच्छदे ॥ १६९।।
ता: () के मुमशुद्धि, निर्मल मोती, नैरना, वानर- मेय. ४ अर्ध; 'तारम् (न मी) के नाम, खिको पुतला, अर्थतारम्' () का चाँदी, अर्ध+ 'तारा' ( सो) * बुद्धदेवी, गालि (सुग्रीव भाई ) की, वृहस्पतिकी की. ३ 8 और नाTA (त्रि) का ऊँचा शब्द, अर्ध है।
२ 'शार:' (पु) का वायु, १ अर्थ और 'शारः' (त्रि) का चितकाबर, , अर्थ है ॥
३ 'संगरः' (पु) के प्रग, युद्ध, क्रियाकार, आपत्ति, विष, ५ अर्थ और 'संगरम्' (न) का शमोफल, १ अर्थ है ।
४ 'मन्त्रः ' (पु) के वेद-भेद ( मन्त्र), सलाह, २ अर्थ हैं । ५ 'मित्रः' (पु) का सूर्य, १ अर्थ और 'मित्रम्' (न) का दोस्त, । अर्थ है।
६ 'स्वरुः' (पु) के यज्ञ-स्तम्भको छीलते समय पहली बार गिरा हुआ काष्ठ-खण्ड, इन्द्रका वज्र, ३ अर्थ (क्षी० स्वा० मतसे-यज्ञ, बाण, यज्ञ स्तम्भ, खण्ड, वज्र, ५ अर्थ) हैं।
७ 'अवस्करः' (पु) के पस्थ ( भग, लिङ्ग), विष्ठा, २ अर्थ हैं।
८ 'आडम्बरः' (पु) के बाजाका शब्द, हाधियोंका गजेना, समारम्भ (भाउम्पर), ३ अर्थ हैं।
९ 'अभिहार:' (पु)के अभियोग, चोरी, कवच आदिको धारण करना, है अर्थ हैं।
१० 'परीवार' (पु) के परिजन ( कुटुम्ब, भृत्य आदि), तलवारकी म्यान, उपकरण ( सहायक सामग्री), ३ अर्थ हैं ।
१. 'अमिहारो... ...च' इत्यंशः क्षी० स्वा० अब्याख्यातः, (२) दृक्कोष्ठान्तर्गतश्च मूलमात्रमेवोपलभ्यते।
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