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४८० अमरकोषः।
[ तृतीयकाण्डे१ प्रकारौ भेदसादृश्ये २ आकारविनिताकृती । ३ किंशास 'सस्यशूकेषू ४ मरू धन्वधराधरौ ॥ १६३ ॥ ५ अद्रयो द्रुमशैलार्काः ६ स्त्रीस्तनान्दो पयोधरौ । ७ ध्वान्तारिदानवा वृत्रा ८ बलिहस्तांशवः कराः॥ १६ ॥ ९ प्रदरा भडनारीरुग्बाणा १० अनाः कचा अपि । ११ अजातको गौः कालेऽप्यश्मश्रुर्ना न तूबरौ ॥ १६५ ।। १२ स्वर्णेऽपि रा: १३ परिकरः पर्यङ्कपरिवारयोः । , 'प्रकारः' (पु) के भेद ( तरह ), सादृश्य ( बरावरी ), २ अर्थ हैं । २ 'आकार' (पु) के चेष्टा, भाकृति (आकार, डीलडौल), २ अर्थ हैं । ३ 'किंशारुः' (पु) के कान आदि (यव आदि) का ढूंड, बाण २ अर्थ हैं ।
४ 'मरु' (पु) के मरुस्थल (राजपुताने के निर्जल स्थान ), पहाड़, २ अर्थ हैं। ५ 'अद्रि' (पु) के पेड़, पहाड, सूर्य, ३ अर्थ है ।
'पयोधरः' (पु) के स्त्री का स्तन, मेघ, कोषकार, कशेरु, नारियल, ५ अर्थ हैं।
७ 'वृत्रः' (पु) के अन्धकार, शत्रु, वृत्रासुर, पर्वत-भेद, ४ अर्थ हैं ।
८ 'करः' (पु) के कर (मालगुजारी, टैक्स, कौड़ो, आदि ), हाथ, किरण, हाथी का सूंद, ४ अर्थ हैं।
९ 'प्रदर' (पु) के भन, स्त्रीका-रोग-विशेष, बाण ३ अर्थ हैं।
१० 'अनः' (पु) के केश, कोण, २ अर्थ और 'अम्रम्' (न) के आंसू खून, २ अर्थ हैं।।
- 'तूबरः' ( + तूवरः। पु) के भंब (समय आने पर भी सींग ) जिसका नही जमा हो वह ) गौ, समय (अवस्था) आने पर भी दाढी-मूंछ जिसाका नहीं जमा हो वह पुरुष, कसाव रस, ३ अर्थ हैं ।।
१२ 'रा' ( = रैपु) के स्वर्ण (सोना), धन, २ अर्थ हैं। .
१३ 'परिकरः' (पु) के पर्यङ्क, परिवार, मन्त्री आदि परिजन, समूह, विवेक, आरम्भ, यस्न, ७ अर्थ हैं ।।
१. धान्यशूकेषु' इति पाठान्तरम् ॥
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