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मानार्थवर्गः ३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
४७६ १ दैत्याचायेंऽपि घिष्ण्यो ना २ काषायः सुरभावपि (७०) ३ चन्द्रोदयो वितानेऽपि ४ स्यादाम्नायोऽन्वये श्रुती (७१) ५ शीताशिते शिते शैत्यं ६ जात्यं कुलजकान्तयोः (७२) ७ व्यवायो व्यवधौ च स्यात् ८ कुल्या कुलवधूः सरिद्' (७३)
इति यान्ताः शब्दाः।
अथ रान्ताः शब्दाः। ९ निवहावसरी वारी १० संस्तरी प्रस्तरावरी। ११ गुरू गोर्पतिपित्राद्यौ १२ द्वापरौ युगसंशयौ ।। १६२ ।।
[धिष्ण्यः ' (पु) के शुक्र, अग्नि, २ अर्थ और 'धिष्ण्यम्' (न) के स्थान, नत्र, घर, बल, ४ अर्थ हैं ] ॥
२ ['काषाया' (पु) के सुगन्धि, कसाव रस, २ अर्थ हैं ।
३ ['चन्द्रोदयः' (पु) के वितान (चंदोवा), चन्द्रमाका उदय, चन्द्रोदय रस ( औषध-विशेष ), । अर्थ हैं ] ॥
४ [ 'आम्नाय:' (पु) के ( वंश, खान्दान ), वेद, उपदेश, अर्थ हैं ] ॥ ५ ['शैत्यम्' (न) के ठंढक, दौर्बल्य, तीचणता, ३ अर्थ है ] ॥ ६ [ 'जात्यम्' (न ) के कुलीन, सुन्दर, २ अर्थ हैं ] ॥ ७ [व्यवायः' (पु) के व्यवधान, मैथुन, २ अर्थ हैं ] ॥ - [ 'कुल्या' (स्त्री) के कुलवधू , छोटी नदी ( नहर ), . अर्थ हैं ] ॥
इति यान्ताः शब्दाः।
अथ रान्ताः शब्दाः। ९ 'चार' (पु) के समूह, अवसर, सूर्य, चन्द्र, मङ्गल आदि सात दिन,
१० 'संस्तरः' (पु) के शय्या या कुशादिकी चटाई आदि, यज्ञ २ अर्थ हैं।
" 'गुरु' (पु) बृहस्पति, पिता आदि (माता, बड़ा भाई भादि. बड़े लोग पढ़ाने वाला , अर्थ हैं।
१२'दाप' (पु) के द्वापर युग, संशय, अर्थ हैं।
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